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________________ को प्रदान करने की समस्त जवाबदारियाँ समाज की होती थी और वह इस दायित्व को प्रसन्नतापूर्वक पूरा करता था । वह प्रोत्साहित करने हेतु विविध कार्यक्रम एवं छात्रवृत्ति भी प्रदान करता रहता था । जैनकथानकों में कपिलकुमार की कथा प्रसिद्ध है, जब वे अध्ययन हेतु श्रावस्ती नगरी में गए, तब उनके आवास एवं भोजनादि की सम्पूर्ण व्यवस्था उसी नगर के शालिभद्र श्रेष्ठी ने की थी। 3.5.5 प्रशासनिक अव्यवस्था एवं अप्रामाणिकता 60 शासन के अन्तर्गत न केवल सरकार, अपितु प्रशासन लगभग 3% धनव्यय शिक्षा - उत्थान के लिए करती है। सन् 2002 ई. के बालकों को शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार दिया गया है। कि शिक्षा-व्यवस्था के विकास के लिए एक स्वतन्त्र शिक्षा - मंत्रालय भी इतना सब होने पर भी शासन में व्याप्त बुराइयाँ आज शिक्षाप्रणाली को प्रभावित कर रही हैं। ये कमियाँ या बुराइयाँ मुख्यतया निम्नलिखित हैं (1) भ्रष्टाचार और अराजकता शासनतन्त्र इतना भ्रष्ट रहा है कि शासन के द्वारा शैक्षिक - विकास के लिए आवंटित या वितरित की गई राशि का अल्पांश ही सही अर्थों में प्रयोग हो पाता है। शेष राशि रिश्वत, धाँधली, घोटाले या गबन के रूप में सम्बन्धित नेता, अधिकारी या कर्मचारी ही खा जाते हैं । - - इसका सीधा प्रभाव शिक्षा-व्यवस्था पर पड़ रहा है, जो दिनोंदिन महँगी होती जा रही है। इससे कई योग्य विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। इससे छात्रों में असन्तोष बढ़ रहा है और उनका व्यवहार भी आक्रामक होता जा रहा है। 30 शामिल है। सरकार अपनी आय में से में पारित संशोधन में 6-14 वर्ष शिक्षा को इतना महत्त्व मिला है संचालित है। (2) नैतिक और आध्यात्मिक आदर्श का अभाव आज शासनतन्त्र स्वयं ही शिक्षार्थी के समक्ष चारित्रिक आदर्श प्रस्तुत नहीं कर पा रहा है। ऐसे तन्त्र से उद्विग्न, असन्तुष्ट और रुष्ट शिक्षार्थी अनुशासनहीनता, उद्दण्डता और उच्छृंखलता के शिकार हो रहे हैं। छात्र आन्दोलन और छात्र - हड़ताल शैक्षिक - विकास के लिए अभिशाप सिद्ध हो रहा है, यह शासनतन्त्र की कमियों का परिणाम है। Jain Education International ( 3 ) अशिक्षित नेता यह भी एक विडम्बना है कि जहाँ देश में सर्वत्र सरकारी पद - प्राप्ति के लिए व्यक्ति का शिक्षित होना अनिवार्य है, वहीं सर्वाधिक गरिमामय पद को प्राप्त करने वाले मंत्री, सांसद, विधायक, पार्षद आदि के लिए शिक्षित होना अनिवार्य नहीं है। आज अधिकांश राजनीतिज्ञ अशिक्षित हैं और जो शिक्षित हैं, उनमें से भी अधिकतर अनैतिक साधनों का प्रयोग करके डिग्री प्राप्त किए हुए हैं। ऐसे नेता दूसरों को नैतिकता का पाठ कैसे सिखा पाएँगे, यह एक विचारणीय प्रश्न है। वस्तुतः, ये नेता अपने भ्रष्ट आचरण, अनैतिक व्यवहार और अशिक्षा के कारण शिक्षार्थियों को सन्तुलित, समग्र और समन्वित विकास का सही मार्गदर्शन भी नहीं दे पाते हैं । जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व For Personal & Private Use Only 144 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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