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________________ 494 की तरह नहीं होने से मृत्तिका आदि से घटादि कार्य कदापि उत्पन्न नहीं होगें। क्योंकि कारणद्रव्य में कार्यशक्ति होने पर ही उस कारण से वह कार्य उत्पन्न हो सकता है तथा कारणद्रव्य में जिस कार्य को प्रगट करने की शक्ति नहीं है, वह कार्य उस कारण से कदापि उत्पन्न नहीं हो सकता है।1438 परन्तु यह हमारा प्रत्यक्ष अनुभव है कि मृत्तिका आदि कारण द्रव्यों से घटादि कार्य प्रगट होते हैं। कारणद्रव्य में कार्य की सत्ता तिरोभाव रूप से अथवा अव्यक्त रूप से विद्यमान रहती है और कालादि सामग्रियों का योग प्राप्त होने पर कार्य का आविर्भाव होता है।1439 इसलिए द्रव्य में गुण और पर्याय अभेदभाव से सत् है। अन्यथा उन द्रव्यों से उन-उन पर्यायों का प्रगटीकरण ही नहीं होगा। द्रव्य-गुण-पर्याय का परस्पर सम्बन्ध भेदाभेद रूप है - जहाँ कुछ दर्शनकारों जैसे नैयायिक और वैशेषिक आदि ने एकान्त भेदवाद को और अन्य कुछ दर्शनकारों जैसे सांख्य, अद्वैत ने एकान्त अभेदवाद को स्वीकार किया है, वहीं जैन दार्शनिक सदा भेदाभेदवाद या उभयवाद के समर्थक रहे हैं। 1440 जैन दार्शनिकों ने केवल कल्पना के आधार पर भेदाभेदवाद को स्वीकार नहीं किया, अपितु यथार्थता की कसौटी पर कसकर ही उसे स्वीकार किया है। जैनदर्शन के मूल उपदेशक सर्वज्ञ परमात्मा रागद्वेष से मुक्त होने के कारण सर्वद्रव्यों की त्रैकालिक पर्यायों को जाननेवाले यथार्थज्ञाता थे और जो जैसा था, उसे वैसा ही प्रकाशित करनेवाले यथार्थवादी थे। उनके अनुसार विश्व के समस्त पदार्थ भेद और अभेदस्वरूप वाले हैं। पदार्थों का यह भेदाभेदस्वरूप अनादि और स्वयंसिद्ध है। 1438 कारणमांहि कार्यनी शक्ति होइ, तो ज कार्य नीपजइं, कारणमांहि अछती कार्य वस्तुनी परिणति न नीपजइ ज। ......... - वही, गा. 3/7 का टब्बा 1439 द्रव्यरूप छती कार्यनी तिरोभावनी रे शक्ति। आविर्भावइ नीपजइ, गुण पर्यायनी व्यक्ति रे। .... - वही, गा. 3/8 1440 भेद भणइ नइयायिकोजी, सांख्य अभेद प्रकाश। जइन उभय विस्तारोजी, पामइ सजश विलास ।। ....- द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 3/5 ............. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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