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________________ अध्याय-3 जैनदर्शन में द्रव्य की अवधारणा का विकास (क्यों और कैसे ) द्रव्य का स्वरूप, लक्षण एवं प्रकार मानव सृष्टि का सर्वोच्च चिन्तनशील और विवेकशील प्राणी है। अपने इर्दगिर्द घटित होने वाली विचित्र घटनाओं एवं विभिन्न दृश्यों को देखकर उसके मन में अनेक प्रश्नों ने जन्म लिया यह विश्व क्या है ? सूर्य पूर्व दिशा में ही उदित क्यों होता है ? चांद रात में ही अपने प्रकाश को क्यों बिखेरता है ? सागर का पानी खारा और नदियों का पानी मधुर क्यों है ? मनुष्य, पशु और पक्षियों में एकरूपता का अभाव क्यों है ? यह विचित्र सृष्टि किसी की रचना है या स्वतः संचालित है ? विभिन्न घटनाओं के पीछे सूत्रधार कौन है ? इस दृश्यमान जगत का मूल कारण क्या है ? यह दृश्यमान जगत ही सबकुछ है या उससे परे भी कुछ है ? - Jain Education International 224 मानव की इन्हीं जिज्ञासाओं से विभिन्न दर्शनों का उद्भव हुआ । अनेक दर्शनों और दार्शनिकों ने इन जिज्ञासाओं को समाधान देने के लिए अथवा सृष्टि की प्रक्रिया को समझाने के लिए अथक प्रयास किए हैं। भारतीय दार्शनिक चिन्तन धारा ने मुख्य रूप से छह आस्तिक और तीन नास्तिक दर्शनों को जन्म दिया। न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, पूर्व मीमांसा और वेदान्त ये छह दर्शन आस्तिक दर्शन माने जाते हैं तथा बौद्ध, जैन और चार्वाक, ये तीन दर्शन नास्तिक दर्शनों के अन्तर्गत आते हैं। यद्यपि जैन एवं बौद्ध दार्शनिकों को आस्तिक-नास्तिक का यह वर्गीकरण मान्य नहीं है। इन दर्शनों में जगत के मूलभूत कारणों तथा उनके कार्यों का विवेचन विभिन्न दृष्टिकोणों से किया गया है। सृष्टि की व्याख्या को समझाने के प्रयासों में इन-इन दर्शनों की तत्त्व-मीमांसाओं का प्रादुर्भाव हुआ जिनमें विश्व के मूलभूत घटकों को For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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