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________________ सूचनाएं एकत्र करने के संयंत्र, सेना का संख्यात्मक - स्वरूप आदि को नियमित करने से संबंधित हो, निःशस्त्रीकरण की श्रेणी में आती है ।"58 इस प्रकार, आंशिक रूप में निःशस्त्रीकरण का अभिप्राय अधिक खतरनाक समझे जाने वाले विशेष प्रकार के हथियारों में कटौती करना है, जबकि समग्र या व्यापक निःशस्त्रीकरण का अभिप्राय है - सभी प्रकार के हथियारों की समाप्ति करना । | निःशस्त्रीकरण तभी संभव होगा, जब राष्ट्रों में भय समाप्त होकर पारस्परिकविश्वास जाग्रत हो । यद्यपि सभी राष्ट्र निःशस्त्रीकरण को चाहते हैं, किन्तु पारस्परिक - भय के कारण इस दिशा में प्रथम कदम उठाना कोई नहीं चाहता है, किन्तु हमें यह ध्यान रखना होगा कि इस भय की वृत्ति से अस्त्र-शस्त्रों की दौड़ कभी समाप्त होने वाली नहीं है। हम अपनी सुरक्षा के साधन के रूप में अस्त्र-शस्त्रों का संग्रह तो करते ही हैं, साथ ही यह भी चाहते हैं कि हमारे पास जो अस्त्र-शस्त्र हैं, वे हमारे प्रतिस्पर्धी अन्य राष्ट्रों की अपेक्षा अधिक विध्वंसक हों, किन्तु भगवान् महावीर ने कहा था - "शस्त्र तो एक से बढ़कर एक बनाए जा सकते हैं, किन्तु अशस्त्र (अभय) से बढ़कर कुछ नहीं है । इन शस्त्रों की दौड़ से मानवता का कल्याण संभव नहीं ।" आज विश्व में इतनी अधिक मात्रा में संहारक अस्त्र-शस्त्र निर्मित हो गए हैं कि वे हमारी इस दुनिया का सम्पूर्ण नाश करने में समर्थ हैं। यदि इन संहारक शस्त्रों का प्रयोग किया गया तो न तो मानव-प्रजाति बचेगी न अन्य प्राणी बचेंगे। इसलिए आज विश्व की सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता यही है कि परस्पर अभय और मैत्री - 2 -भाव का विकास हो, क्योंकि यही एक ऐसा तत्त्व है, जो दुनिया को -शस्त्रों की दौड़ से बचा सकता है। अस्त्र 58 विश्व - शांति एवं अहिंसा - प्रशिक्षण 140 Jain Education International - पृ. 209 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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