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________________ ४/ अमीरसधारा प्रचलित हैं, उनका अपना अस्तित्व है, ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म को माने। क्षत्रिय वह है जो ब्रह्म को पाने के लिए ब्रह्म बनने के लिए अपने क्षात्रधर्म का उपयोग करे। वैश्य वह है, जो उनका अनुसरण करे, 'यथा राजा तथा प्रजा' की तरह । शूद्र वह है जो इन सबसे दूर है। यदि हम इनको जातिगत माने. तो महावीर के अनुसार धर्म के दरवाजे पर चारों जातिवाले आ सकते हैं। स्वयं महावीर क्षत्रिय थे, पर ब्राह्मण भी थे। हकीकत तो यह है कि वे पहले ब्राह्मण थे, बाद में क्षत्रिय। महावीर पहले ब्राह्मणी के गर्भ में रहे, फिर देवों के द्वारा उन्हें क्षत्रिया के गर्भ में संक्रान्त किया गया। चाहे कुछ लोग इसे कपोलकल्पित कथा क्यों न मानें, पर इस बात का कुछ आधार है। और वह आधार कुछ मायने रखता है, उसका कुछ तात्पर्य भी है। महावीर में जहाँ ब्रह्मर्षि के गुण कूट-कूट कर भरे थे, वहीं राजर्षि के गुण भी। संसार में, महावीर ही एक ऐसे व्यक्ति हुए, जो ब्रह्मर्षि भी थे, और राजर्षि भी थे। या हम ऐसे भी कह सकते हैं, जिनकी तुलना न कोई राजर्षि कर पाया, न कोई ब्रह्मर्षि । जहाँ महावीर में ब्रह्मर्षि के सत्य, अहिंसा, तप आदि गुण विद्यमान थे, वहीं स्वावलम्बन, पुरुषार्थ, संघर्ष, संकल्प जैसे राजर्षि के गुण भी थे। स्वावलम्बन तो इतना बढ़ा-चढ़ा था कि उन्होंने अपने अनुयायियों को भी 'अशरण-भावना' की प्रेरणा दी। इसीलिए उनको किसी जाति के दायरे में देखना उनके प्रति और उनके विचारों के प्रति अन्याय होगा। उनके विचार उस स्तर पर पहुंचे हुए हैं, जहाँ अन्य विचारों की पहुंच न थी। यदि उनके बारे में यह भी कहा जाए कि आध्यात्मिक विचारों के वे पराकाष्ठा पर थे, तो इसमें भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। उनके लिए मानव महान् था, उसके भीतरी बँटवारे नहीं। महावीर ने मानव को वह महानता दी, जो और कोई न दे पाया। ईश्वरत्व और जिनत्व का भी उसे अधिकार दिया। जिस नारी को लोगों ने कुचला, उसी को महावीर ने उठाया, उसे भी मुक्ति की बागडोर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003964
Book TitleAmiras Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1998
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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