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________________ गाली-गलौच तो अमुमन करता ही है। आखिर, सम्पूर्ण संसार को प्रेम, शांति और एकता की बात कहने वाला व्यक्ति खुद के ही दिल में रहने वाले क्रोध को क्यों नहीं जीत पाता? क्रोध के कारण अपने ही कुटुम्ब और कैरियर को दुःखी और चौपट क्यों कर डालता है? क्रोध तो वह कंश है जो हमारी बुद्धि, विवेक, घर-परिवार, श्रद्धा-भक्ति सबको गुलाम बना लेता है। जैसे ही क्रोध आया बुद्धि के दरवाजे बंद हो जाते हैं, विवेक बाहर चला जाता है। शायद शराबी भी शराब पीकर उतना नुकसान नहीं करता होगा जितना क्रोधी क्रोध करके नुकसान कर डालता है। __कर्म-बंधन की दृष्टि से देखेंगे तो क्रोध के कारण जितने कर्मों का बंधन होता है उतना अन्य किसी कारण से नहीं होता। सज्जन का क्रोध क्षण भर रहता है, साधारण आदमी का क्रोध दो घंटे रहता है । उग्र व्यक्ति का क्रोध एक दिन और एक रात तक रहता है, पर निकृष्ट लोगों का क्रोध तो मरते दम तक नहीं मिटता। कई लोगों का क्रोध तो जन्म-जन्मांतर तक उनका पीछा नहीं छोड़ता। इसीलिए बुद्ध ने कहा था - 'वैर कभी वैर से शांत नहीं होता, वैर जब भी शांत होता है तो प्रेम से ही, क्षमा से ही शांत होता है। यदि किसी ने चोरी की है तो जन्म-जन्मांतर तक शायद यह पाप उदय में न आए पर क्रोध से मरकर किसी का बुरा कर डाला है, तो जन्मों तक वह कर्म आपका पीछा नहीं छोड़ेगा। याद कीजिए भगवान महावीर को जिन्हें एक जन्म में क्रोध करने के कारण कितने जन्म-जन्मांतर और करने पड़े। बताते हैं - भगवान महावीर ने अपने पूर्व के किसी जन्म में अपने शैय्या पालक को आदेश दिया था कि जो नृत्यांगनाएँ नृत्य कर रही हैं, उन्हें देखते और संगीत सुनते हुए जब मुझे नींद आ जाए तो नृत्य-संगीत बंद करवा देना। आदेश देने के बाद थोड़ी देर में उन्हें नींद आ गई। आधी रात के बाद जब उनकी नींद खुली तो उन्होंने देखा कि संगीत अभी भी बज रहा है, नृत्य भी जारी है। तत्काल उन्होंने शैय्या पालक को तलब किया कि अभी तक नृत्य-संगीत क्यों चल रहा है, जबकि मेरा आदेश था कि मझे नींद आ जाने पर नृत्य-संगीत बंद कर दिया जाए। तुमने मेरे आदेश की अवहेलना कैसे की? शैय्यापालक ने कहा, 'राजन गुनाह माफ हो! मैं संगीत सुनने और नृत्य देखने में इतना तल्लीन 31 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003956
Book TitleKaise Banaye Aapna Career
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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