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________________ चेव बुट्टा य ॥१॥ गयउर सिर्जसिक्सुरसदाण वसुहार पीढ गुरुपूआ । तक्लसिलायलगमणे पाहुबलिनिवेअणं चेव ॥२॥ हत्विणउरं असोजमा सावत्थी तहय चेव साके। विजयपुर बंभवलयं पाडलिसंड पउमसंडं ॥३॥ सेयपुरं रिद्वपुरं सिद्धत्थपुरं महापुरं चेव। धण्णकड बद्धमाणं सोमणसं मंदिरं चेव ॥४॥ चकपुरं रायपुर मिहिला रायगिहमेव बोदई। वीरपुरं बारबई कोअगडं कोलयम्गामो॥५॥ एएमु पढमभिक्खा लदाओ जिणवरेहिं सोहिं। दिण्णाउ जेहिं पढम तेसिं नामाणि वोच्छामि ॥६॥ सिजंस बभदत्ते सुरेंददत्ते य इंददत्ते य । पउमे य सोमदेवे महिंद वह सोमदत्ते य ॥ ७॥ पुस्से पुणवसू पुणनंद सुनंदे जए य विजए या तत्तो य धम्मसीहे सुमित्त तह बग्घसीहे य ॥८॥ अपराजिय विस्ससेणे वीसइमे होइ बंभदत्ते य। दिपणे वरदिपणे पुण धण्णे बहुले य बोदले॥९॥ एए कयंजलिउडा भत्तीचहुमाणसुक्कलेसागा। तकालपहट्ठमणा पडिला सुं जिणवरिंदे ॥३३०॥ सोहिंपि जिणेहिं जहिअं लदाउ पढमभिक्खाओ। तहिअं वसुहाराओ बुट्टाओ पुष्फबुट्टीओ ॥१॥ अदत्तेरसकोडी उक्कोसा तत्य होइ वसुहारा। अद्धत्तेरसलक्खा जहण्णिा होइ बसुहारा ॥२॥ सवेसिपि जि. णाणं जेहिं दिण्णाउ पढमभिक्खाओ। ते पयणुपिजदोसा दिववरपरकमा जाया ॥३॥ केई तेणेव भवेण निघुया सबकम्मउम्मुका। अग्ने (केई) तइयभवणं सिजिझस्संती जिणसगासे ॥४॥ कहई सब्विड्ढीए पूएऽहमदछै धम्मचकं तु। विहरइ सहस्समेगं छउमत्थो भारहे वासे ॥५॥चहलीअडंबइडा जोणगविसओ सुवण्णभूमी या आहिंडिया भगवया उसमेण तवं चरतेण ॥६॥ बहली य जोणगा पल्ह्गा य जे भगवया समणुसिट्ठा।अन्ना य मिच्छजाई ते तइया भदया जाया ॥७॥तित्थयराणं पढमो उसभरिसी(सिरी)विहरिओ निरुवसम्मो। अ रो अग्गयभूमी जिणवरस्स ॥८॥ छउमत्यो परियाओ वाससहस्सं तओ परिमताले। णग्गोहस्स य हेडा उप्पणं केवलं नाणं ॥९॥ फग्गणबहले एकारसीइ अह अट्टमेण - भत्तेणं। उप्पण्णंमि अणंते महव्वया पंच पण्णवए ॥३४०॥ उप्पण्णमि अणते नाणे जरमरणविप्पमुक्कस्स। तो देवदाणविंदा करिति महिमं जिणिंदस्त ॥१॥ उजाणपुरिमताले पुरीइ विणियाइ तत्य नाणवरं । चकुप्पायो य भरहे निवेयणं चेव दोहंपि॥२॥तायमि पूइए चक पूइयं पूयणारिहो ताओ। इहलोइयं तु चकं परलोयसुहाचहो ताओ ॥३॥ सह मरुदेवाइ निगओ कहर्ण पव्वज उसभसेणस्स। बंभीमरीइदिक्खा सुंदरी ओरोह सुअदिक्खा ॥४॥ पंच य पुत्तसयाई भरहस्स य सत्त ननुअसयाई। सयराह पव्वइया तंमि कुमारा समोसरणे ॥५॥ भवणवइवाणमंतरजोइसवासी विमाणवासी य। सबिड्ढीइ सपरिसा कासी नाणुप्पयामहिमं ॥ ६॥ दतॄण कीरमाणिं महिमं देवेहि खत्तिओ मरिई। सम्मत्तलबबुद्धी धम्म सो. ऊण पाइओ॥७॥ मागहमाई विजयो सुंदरि पत्रज बारसऽभिसेओ। आणवण भाउगाणं समुसरणे पुच्छ दिटुंतो ॥८॥ बाहुबलिकोवकरणं निवेयणं चकि देवया कहण । नाहम्मेणं जुज्को दिक्खा पडिमा पइण्णा य ॥९॥ पढमं दिट्टीजुद्ध वायाजुदं तहेव वाहाहिं। मुट्ठीहि य दंडेहि यसबत्यवि जिप्पए भरहो॥३२॥ भा०ासो एव जिप्पमाणो बिहुरो अह नरवई विचिं. तेइ। किं ममि एस चक्की? जह दाणिं दुबलो अयं ॥३३॥ संवच्छरेण धूर्य अमूढलक्खो उ पेसए अरिहा । हत्थीओ ओवरत्ति य वुत्ते चिंता पए नाणं ॥३४॥ उप्पण्णनाणरयणो तिष्णपइण्णो जिणस्स पामूले। गंतुं तिथं नमिउं केवलिपरिसाइ आसीणो ॥३५॥ काऊण एगछत्तं भरहोऽविअ भुंजए विउलभोए। मरिईवि सामिपासे बिहरइ नवसंजमसमग्गो ॥३६॥ सामाइअमाईअं इक्कारसमाउ जाव अंगाउ । उजुत्तो भत्तिगतो अहिजिओ सो गुरुसगासे॥३॥ अह अण्णया कयाई (मरीई) गिम्हे उण्हेण परिगयसरीरो। अण्हाणएण चइओ इमं कुलिंगं विचिंतेइ ॥३५०॥ मेरुगिरीसमभारे न समत्योऽहं मुहुत्तमवि वोढुं । सामण्णए गुणे गुणरहिओ संसारमणुकखी ॥१॥ एवमणुचितंतस्स तस्स निअगा मई समुप्पण्णा। लदो मए उवाओ जाया मे सासया बुद्धी ॥२॥ समणा तिदंडविरया भगवंतो निहुअसंकुइजअंगा। अजिईदियदंडस्स उ होउ तिदंडं महं पिंधं ॥३॥ लोइंदिअमुंडा संजया उ अहयं सुरेण ससिहो य। थूलगपाणिवहाओ वेरमणं मे सया होउ॥४॥ निकिंचणा य समणा अकिंचणा मज्झ किंचणं होउ। सीलसुगंधा समणा अहयं सीलेण दुग्गंधो ॥५॥ ववगयमोहा समणा मोहच्छण्णस्स छत्तय होउ। अणुवाहणा य समणा मा तु उचाहणा होन्तु ॥६॥ मुकंबरा यसमणा निरंवरा मझधाउरत्ताई। इंतुय मे पत्याई अरिहो मि कसायकलसमई ॥७॥ वजंतिऽवजभीरू बहुजीवसमाउलं जलारंभ। होउ मम परिमिएणं जलेण व्हार्ण च पिवणं च ॥८॥ एवं सो रुदअमई निअगमहविगप्पियं इमं लिंग। तद्धितहेउसुजुत्तं पारिखजं पयतेइ ॥९॥ अह तं पागडरूवं वळू पुच्छेइ बहुजणो धम्म । कहा जईणं तो सो विआलणे तस्स परिकहणा ॥३६०॥ धम्मकहाअक्सित्ते उपविए देइ भगवओ सीसे। गामनगराइयाई विहरर सो सामिणा सद्धिं ॥१॥ समुसरण भत्त उग्गह अंगुलि झय सक साक्या अहिया। जेआ बड्ढइ कागिणि लंछण अणुसजणा अट्ठ॥२॥राया आइयजसो महाजसे अइबले य बलभदे । बलविरिए कत्तविरिए जलविरिए दंडपिरिए य॥३॥ एएहिं अद्धभरहं सवलं भुत्तं सिरेण धरिओ या पवरो जिणिंदमउडो सेसेहिं न चाइओ बोढुं ॥४॥ अस्सावगपडिसेहो | छट्टे छढे य मासि अणुओगो। कालेण य मिच्छत्तं जिणंतरे साहुवोच्छेओ ॥५॥ दाणं च माहणाणं वेए कासी अपुच्छ निवाणं । कुंडा थूम जिणहरे कविलो भरहस्स दिक्खा य॥६॥ ११८३आवश्यक सनियु- सूक्तिकं मूलसूत्र, forgiri मुनि दीपरत्नसागर
SR No.003941
Book TitleAagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages47
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size34 MB
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