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________________ * | देति पच्छित्तं, वेन्ति अण्णत्थ सोहय ॥६॥ण संभरति जो दोसे, सम्भावा ण य मायया। पचक्खी साहए ते उ, माइणो उण साहई॥७॥ जति आगमो य आलोयणा य दोण्णिवि समं ण णिवद्दयाई। ण हु देति उ पच्छित्तं आगमववहारिणो तम्स ॥८॥ जति आगमो य आलोयणा य दोषिणवि समं णिवइताई। दिति ततो पच्छित्तं आगमववहारिणो तस्स ॥९॥ को पुण पायच्छिने दायचे अणरिहो व अरिहो वा ?। भण्णइ इणमो गुणसू अरिहो जो वा अणरिहो उ॥१५०॥अट्ठारसहि ठाणेहि. जो होतिऽपरिणिहिओ। नऽलमत्थो तारिसो होति, ववहारं ववहरिनए ॥१॥ अट्ठारसहिं ठाणेहिं, जो होति सुपरिट्टितो। अलमत्यो तारिसो होति, ववहारं ववहरित्तए ॥२॥ अट्ठारसहि ठाणेहि. जो होइ अपतिद्वितो। नऽलमत्यो नारिसो होति, ववहारं वबहरित्तए ॥३॥ अट्ठारसहिं ठाणेहिं, जो होति सुपतिहितो। अलमत्यो तारिसो होइ, ववहारं ववहरित्तए।४। वयछक्क कायछकं, अकप्पो गिहिभायणं । पलियंक(गोयर)णिसिज व्हाणे, भूसा अट्ठार ठाणेते ॥५॥ परिणिट्ठियों परिणाया पतिहितो जो ठिओ उ तेसु हवे । अविनू सोहि ण याणति अहितों पुण अण्णहा कुजा ॥६॥ बत्तीसाए तु ठाणेहि, जो होइऽपरिणिहितो। णऽलमत्थो तारिसो होइ, ववहारं ववहरित्तए ॥७॥ बत्तीसाए तु ठाणेहिं, जो होति परिणिट्टितो। अलमत्यो तारिसो होति, ववहारं ववहरित्तए ॥८॥ बन्नीसाए उ ठाणेहिं, जो होति अपइडितो। णऽलमत्थो तारिसो होति, ववहारं ववहरित्तए ॥९॥ बत्तीसाए तु ठाणेहि, जो होति सुपतिहितो। अलमत्यो तारिसो होति, ववहारं वयह रित्तए ॥१६०॥ अट्ठविहा गणिसंपय एकेका चउबिहा उ बोद्धया। एसा खलु बत्तीसा ते खलु ठाणा इमे होति ॥१॥ आयार सुय सरीरे बयणे बायण मती पतोगमती। एतेसु संपया खलु अट्टमिया संगहपरिण्णा ॥२॥ एसा अट्ठविहा खलु एकेकाए चउविहो भेदो। इणमो उ समासेणं वोच्छामी आणुपुष्वीए ॥३॥ आयारसंपयाए संजमधुवजोगजुनया पढमा। वितिय असंपम्गहिया अणिययवित्ती भवे ततिया ॥४॥ तत्तो य वुड्ढसीले आयारे संपया चउखेसा। चरणमिह संजमो तू तहियं णिचं तु उवउत्तो ॥५॥ आयरिओ अ बहुस्सुयनवस्सिजचाइएहि व मदेहि । जो होति अणुस्सित्तो सो तु असंपग्गहीउत्ति ॥६॥ अणिययचारी अणियतवित्ती अगिहो य होति जो अणिसो। णिहुयसहावअचंचल णायचो बुइढसीलोनि ॥ ७॥ बहुसुत परिजितसुत्ते विचित्तसुत्ते य होति बोद्धब्बे। घोसविसुद्धिकरे या चउहा सुतसंपदा होति ॥८॥बहुसुत जुगप्पहाणे अभंतर बाहिरं च बहु जाणे। होनि चसहरगहणा चारिनपी मुबहुयं तु ॥९॥ सगणामं व परिजितं उक्कमकमयो बहुहिं व कमेहिं । ससमयपरसमएहिं उस्सग्गऽववातयोवि वितू(जित) ॥१७॥ घोसा उदात्तमादी तेहिं विसुद्ध न घोसपरिसुद्ध । एसा सुतोवसंपय सरीरसंपयमतो वोच्छं ॥१॥ आरोहपरीणाहो तह य अणोत्तप्पया सरीरस्स। परिपुर्णिणदियमाइय संघतणधिरे य बोदव्यो ॥२॥ आरोहो दिग्धत्तं विक्खंभो होति तित्निया(पिहुलया) चेव । आरोहपरिणाहो य संपया एस णादव्या ॥३॥ तपु लजाए धातू अलजणिज्जो अहीणसव्वंगो। होति अणोत्तप्पो खलु अवि. कलईदी तु परिपुण्णो॥४॥ पढमादीसंघयणो बलियसरीरो थिरो मुणेयब्वो। एसा सरीरसंपय एत्तो वयणम्मि वोच्छामि ॥५॥ आएज महुखयणे अणिसियवयणे नहा असंदिदे। आदिज गज्सवको अस्थवगादं भवे महुरं ॥६॥ अहवा अफरुसवयणो खीरासवलद्धिमादिजुत्तो वा। अहवा सूसरसूहगगंभीरजुओ महुरखको ॥ ७॥ णिस्सिओं कोहादीहिं रागहोसेहिं । वावि जं वयइ । होनि अणिम्सियवयणो जो वयती एयवइरिनं ॥८॥ अवत्तं अफुडतं अत्यबहुत्ता व होति संदिदं । विवरीयमसंदिदं वयणेसा संपदा चतुहा ॥९॥ वायणभेदा चतुरो विधिउदिसणा समुदिसणओ या परिणिवविया बाए णिजवणा चेव अत्थस्स ॥१८०॥ तेणेव गुणेणं तू वाएयव्वा परिक्खितुं सीसा। उहिसई विजिणे जं जस्स तु जोग्ग तं तस्स ॥१॥ अपरीणामगमादी बियाणितुमभायणे ण वाएति। जह आममट्टियघडे अंबे व ण छुम्भए खीरं ॥२॥ जदि छुम्भई विणस्सति णस्सति वा एवमपरिणामादी। णोहिस्से छेदमुतं समुहिसयाऽवि तं चेव ॥३॥ परिणिवविया वाए जत्तियमेतं तु तरति तु ग्धेनुं। जाइगदिट्टतेणं परिजिए ताहण्ण उदिसति ॥४॥ णिजवयो अत्यस्सा जो उवजाणेति अत्यों मुनस्स। अत्येणचि णिवहति अत्यपि कहेति जं भणितं ॥५॥ मइसंपय चउभेदा उम्गह ईहा अवाय धारणया। उग्गहमति छम्भेता तत्थ इमे होंनि छम्भेया ॥६॥ खिप्प पर बहुविहं वा धुष णिस्सित तह य होयऽसंदिदं । ओगिण्हति एवीहा अवायमिति धारणा चेव ॥ ७॥ परवाइण सिस्सेण व उबारितमेत्तमेव ओगिण्हे । तं खिप्पं बहुगं पुण पंचवछ व सत्त गंथसता ॥८॥ बहुविहऽणेगपयारं जह लिहति पहारए गणेइऽविय। अस्खाणगं कहेति इ सहसमूहं वऽणेगविहं ॥९॥णवि विस्सरइ धुर्व तं अनिस्सिर्य ज ण पोत्थए लिहिनं। अणुभासिया गेण्हनि IPA निसकित होअसंदिद्धं ॥१९०॥ उम्गहियस्स तु ईहा इंहिएं पच्छा अणंतर अवायो। अवगते पच्छाधारण ईय विसेसो इमो णवरं ॥१॥ बहु बहुविह पोराणं दुबरी पोराण पुरा व जितं दुखर णयभंगविलत्ता ॥२॥ एतो उ पओगमती चउरिहा होति आणुपुधीए। आय पुरिसं च खेत्तं वत्युपि पउंजए वातं ॥ ३॥ जाणति पयोग भिसजो वाही जे. णाऽऽउरस्स छिजति उ । इय वाओ व कहा वा णियसत्ती गाउ कातवा ॥४॥ पुरिसं उवासगाई अहवावी जाणगाइयं पुरिसं। पुष्वं तु गमेऊणं ताहे वाओ पउत्तव्यो ॥५॥ खेत १०१३ जीतकल्पभाष्यं - मुनि दीपरत्नसागर
SR No.003938
Book TitleAagam Manjusha 38A Chheyasuttam Mool 05 A Jiyakappo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages56
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jitkalpa
File Size40 MB
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