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________________ में कहीं कोई फर्क नहीं होता, प्रक्रियाएँ, पद्धतियाँ बदल सकती हैं। जो परमात्मा को स्वीकार करता है, हर उस आदमी के लिए परमात्मा की प्रार्थना खुली है। शब्द बदल जायेंगे, भाषाएँ बदल जायेंगी, मगर उससे प्रार्थना के भाव नहीं बदलते। परमात्मा कभी शब्दों में नहीं जीते। उनका स्थान तो मनुष्य की भावनाओं के मन्दिर में होता है। इसी कारण मेरे लिये सारे धर्मों का सम्मान है, सारे धर्मों की अच्छी एवं आदर्श बातों के लिए इज्जत है। __ मैं चाहता हूँ कि हर आदमी के अन्तर्हदय में हर धर्म और हर धर्म की अच्छी बातों के प्रति आदर का भाव पनपे । माना आप राम के उपासक होंगे, पर इसका अर्थ यह नहीं है कि जब मस्जिद के पास से गुजरो, तो अपनी छाती को चौड़ा करके, सिर को अकड़ के मारे ऊँचा रखते हुए गुजरो । ऐसे ही कोई मन्दिर मिलता है और मस्ज़िद का आदमी भले ही मन्दिर को न माने, मगर उस मन्दिर के सामने अकड़कर चलने का हक कभी उसका खुदा या पैगम्बर नहीं दे सकता। सबका सम्मान करो, सबका अदब करो, सबसे अच्छी बातों को स्वीकार करो। एक सही निगाह लेकर आदमी गलत जगह भी पहुँच जायेगा, तो वह वहाँ से भी कोई आत्मप्रेरणा लेकर बाहर निकलेगा और गलत नज़र के साथ तुम मन्दिर और मस्जिद में भी चले जाओगे, तो वहाँ भी चित्त चंचल हो जायेगा। सब कुछ आप पर निर्भर करता है। घाटों को कभी मूल्य मत दो, मूल्य हमेशा नदी में उतरने को दो, महत्त्व जीने को दो, चलने को दो। बैठने से कोई आदमी नहीं पहुँचेगा। वेद कहते हैं-चरैवेति-चरैवेति ! तुम चलो, तुम जीयो, तुम आगे बढ़ो। तुम्हारा आगे बढ़ना ही तुम्हारा मार्ग प्रशस्त करेगा। यह बात केवल मैं ही नहीं कह रहा हूँ, वरन हज़ारों साल पहले गीता ने भी यही शंखनाद किया कि चाहे तुम जिस मार्ग से चलो, हर मार्ग मुझ तक ही पहुँचाएगा । दुनिया में इतनी महान् बात करने वाले दो ही व्यक्ति हुए हैं, पहला आदमी कृष्ण और दूसरा व्यक्ति महावीर।। महावीर ने अनेकांतवाद की स्थापना की और कहा कि हर आदमी की बात में सच्चाई हो सकती है, हर धर्म में अच्छाई हो सकती है । माना एक आदमी चोर है । यह उसका अवगुण है, लेकिन वह बांसुरी बजाना जानता है, यह उस आदमी का गुण है। अगर एक पक्ष पर ही ध्यान दिया कि यह आदमी चोर है, तो उसके जीवन में एक मेघ-मल्हार, राग दीपक छेड़ने की जो खासियत है, तुम उससे महरूम 142 | जागो मेरे पार्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003890
Book TitleJago Mere Parth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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