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________________ चूना आदि से मिलकर बना है। इसमें दरवाजे, खिड़की हैं, इसकी सजावट की गई है। इधर-उधर पड़ोस में लोग रहते हैं। रास्ता इधर-उधर नहीं है। कुछ सीमा हो सकती है। जहाँ सीमा होगी, वहाँ व्याख्या होगी, परिभाषा होगी। लेकिन आप मकान की छत पर हों और कोई पूछे कि आकाश की क्या परिभाषा है, तो आप आकाश को परिभाषित नहीं कर पाओगे। शून्य को शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते 'पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। याज्ञवल्क्य के पास एक युवक पहुँचा और पूछा, ‘अस्तित्व में कितने देवी-देवता हैं ?' याज्ञवल्क्य ने कहा, 'तैंतीस करोड़।' युवक अचंभे में पड़ गया 'तैंतीस करोड़, अरे इतनों की तो अँगूठे की पूजा भी न हो पाएगी। कुछ और खास चुनकर बता दें, ऋषिवर !' 'तब तो तैंतीस लाख देव ऐसे हैं जो खास हैं', याज्ञवल्क्य ने कहा। 'तैंतीस लाख की पूजा भी न कर पाऊँगा।' युवक ने असमर्थता जताई। 'चलो, तैंतीस हजार चुनकर दे देता हूँ', ऋषि बोले। 'तैंतीस हजार भी अधिक ही है।' 'तीन सौ तैंतीस?' 'ये भी अधिक ही हैं कब-कब किसको अर्घ्य दे पाऊँगा ? कुछ और कम करो।' युवक ने कहा। ___'मैं, तुम्हें तीन देवों के नाम बता देता हूँ जो परम श्रेष्ठ हैं, तू उन्हीं की उपासना कर ले। याज्ञवल्क्य ने उपाय दिया। 'तीन ? आप तो एक ही नाम बता दें। तीन की पूजा में कभी कोई छूट गया तो वह रूठ जाएगा, उसको मनाऊँगा तो दूसरा रूठ जाएगा, आप तो बस केवल एक ही देव का नाम बता दें', युवक ने कहा। तब याज्ञवल्क्य ने कहा, 'देव तो तेतीस करोड़ हैं लेकिन इनके ऊपर इनसे श्रेष्ठ जो देव है वह है आत्मदेव, जा तू उसी की उपासना कर, उसी को खोज, उसी में लीन हो। जो आत्मतत्त्व तक पहुँचता है वही परमात्मा तक पहुँच पाता है। ____ आज के सूत्र अंधकार में भटकती हुई चेतना के लिए प्रकाश की किरण हैं। आज के सूत्र शब्द नहीं हैं, न ही परिभाषा हैं। ये सूत्र वर्णन के सूत्र हैं, एक-एक शब्द अनमोल है, क्योंकि तुम्हें मार्ग दिखाया जा रहा है, ताकि तुम सत्य की प्रयोगशाला में खड़े हो सको, सत्य का साक्षात्कार कर धर्म, आखिर क्या है? 142 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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