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________________ जिएं तो ऐसे जिएं SITEE Materies -2 या मी Rajesheelsage အန်အမင်း - မျိုးမင်းစိုခံ -श्री चन्द्रप्रभ ऐसे "स्वस्थ और मधुर जीवन जीने का पहला और आखिरी मंत्र है : सकारात्मक सोच। यह एक अकेला ऐसा मंत्र है, जिससे जिाएं न केवल व्यक्तिगत और समाज की, वरन समग्र विश्व की समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। यह सर्वकल्याणकारी महामंत्र है। कोई अगर पूछे कि मानसिक शांति और तनाव-मुक्ति की कीमिया दवा क्या है, तो सीधा-सा जवाब होगा - सकारात्मक सोच। मैंने अनगिनत लोगों पर इस मंत्र का उपयोग किया है और आज तक यह मंत्र कभी निष्फल नहीं हुआ। सकारात्मक सोच का अभाव ही मनुष्य की निष्फलता का मूल कारण है। मेरी शांति, संतुष्टि, तृप्ति और प्रगति का अगर कोई प्रथम पहलू है, तो वह सकारात्मक सोच ही है। सकारात्मक सोच ही मनुष्य का पहला धर्म हो और यही उसकी आराधना का बीज-मंत्र। सकारात्मक सोच का स्वामी सदा धार्मिक ही होता है। सकारात्मकता से बढ़कर कोई पुण्य नहीं और नकारात्मकता से बढ़कर कोई पाप नहीं; सकारात्मकता से बढ़कर कोई धर्म नहीं और नकारात्मकता से बढ़कर कोई विधर्म नहीं।" छिमाई आकार • पृष्ठ : 196 • मूल्य : 60/- • अकसर्व : 15/ लक्ष्य बनाएं, पुरुषार्थ जगाएं SHAR N DAN -श्री चन्द्रप्रभ महावीर और बुद्ध, राम और रहीम, मीरा और मंसूर जैसे अवतार पुरुषों का भी एक लक्ष्य था, उसी तरह आइंस्टीन और एडीसन, शेक्सपीयर और मैक्समूलर, नोबल और नेलसन लक्ष्य बनाई, ने भी अपने जीवन में महान लक्ष्य बनाए और संपूर्ण पुरुषार्थ के साथ उसे प्राप्त करने में जुट गए। उन्होंने हर हाल में पुरुषार्थ जगाएँ सफलता प्राप्त की और वे शिखर पुरुष बन गए। वास्तव में यह पुस्तक लक्ष्य यानी मंज़िल के निकट से निकटतर तक ले जानने के तमाम रास्ते बताती है और रास्तों में आने वाली सभी कठिनाइयों को दर करने के तरीके भी बताती है। यह एक ऐसी मार्गदर्शिका, ऐसी सहयात्री है, जो आपकी उंगली पकड़ कर सफलता की ओर ले जाती है। पुस्तक में लक्ष्य प्राप्ति के 6 चरण बताए गए हैं। पहले चरण में मन के बोझ को उतार फेंकने की सलाह दी गई है, यानी हर तरह के दबाव और तनाव से मुक्त हो जाएं। दूसरे चरण में दूसरों के दिलों पर राज करने और तीसरे चरण में प्रतिक्रियाओं से परहेज़ करने का मशवरा दिया गया है, जिससे आप में शांति, उत्साह और आनंद बरकरार रह सके। चौथे चरण में कहा गया है कि भय का भूत शरीर और मन को खा जाता है और निष्क्रिय बना देता है, अतः इससे पीछा छुड़ाना अनिवार्य है। अगले पांचवें और छठे चरण में स्वस्थ सोच को अपनाने और जीवन-दृष्टि को सकारात्मक बनाने का परामर्श है। लेखक का कहना है कि जो इन चरणों से गुजर गया, मानो वह अपना लक्ष्य पा गया। छिमाई आकार • पृष्ठ: 112 • मूल्य : 48/- • अकबर्ष : 15/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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