SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और नारद जी के कपड़े ख़राब हो गए। नारदजी ने कपड़े झटकाए और सोचा बोलो भाई, क्या बात वे भी किसके पास पहुँच गए। ख़ैर, सूअरसिंह ने कहा है ? पूजा 1 नारदजी ने कहा ज़रा तमीज़ से बोलो, मैं नारद हूँ महर्षि नारद, मेरी तो देवता भी करते हैं। सूअर ने कहा- तुम महर्षि हो तो हमें क्या ? तुम यहाँ किसलिए आए हो । नारद ने कहा तुम्हें बैकुंठ धाम ले जाने के लिए सूअर ने पूछा- बैकुंठ ? यह किस बला का नाम है ? नारद ने बताया वहाँ बहुत सुख है, किसी तरह का दुःख नहीं है । सूअर ने कहा अच्छा, ऐसा भी कोई धाम है ? लेकिन हमें यहाँ भी कोई दुःख नहीं है, हम यहीं स्वर्ग का सुख जी रहे हैं। नारद ने ज़वाब दिया- ये सुख नहीं, भयंकर दुःख है । वहाँ सब कुछ शानदार है, हर ओर मखमल के गलीचे बिछे हैं । सूअर ने कहा मैं तुम्हारी बात मान लेता हूँ पर वहाँ ऐसी मखमली नरम-नरम कीचड़ है ? नारद ने कहा जिसे तुम नरम कह रहे हो वह गंदगी है गंदगी। उसने कहा - तुम्हारे लिए होगी गंदगी, हमारे लिए तो ए. सी. रूम है। अच्छा, बताओ हमें वहाँ पर स्वादिष्ट विष्ठा मिलेगी या नहीं ? - c Jain Education International - - नारद का माथा ठनका, अरे इसे तो बैकुंठ में ले जाना मुश्किल काम है । नारद सोच ही रहे थे कि सूअर ने पूछा क्या वहाँ बच्चे पैदा करने की छूट है ? नारद जी ने कहा वहाँ बच्चे-बच्चे पैदा नहीं किए जाते । सूअरसिंह ने जा रे तेरे ऐसे स्वर्ग का सुख तू ही भोग । जहाँ ऐसा स्वादिष्ट भोजन, यह ए. सी. रूम न मिले और बच्चों को पैदा करने की छूट न हो तो वह कैसा स्वर्ग, कैसा बैकुंठ । नारदजी ने सूअर को हाथ जोड़े और कहा धन्य है तुम्हें ! तुम नरकवासियों को स्वर्ग ले जाना बहुत बड़ी तपस्या है। कहा For Personal & Private Use Only - - - - नारदजी चले गए बैकुंठ धाम में और भगवान जी से कहा प्रभु आप ही अपनी माया जानते हैं। वास्तव में इन पृथ्वीवासियों को नरक में से स्वर्ग में ले जाना बहुत कठिन काम है। भगवान ने कहा- देख लो भाई, मैंने तुम्हें पहले ही कहा था ये सब उस किनारे के खेल हैं । हम लोग तो इस किनारे के लोग हैं I हमारी पुकार तो कोई विरला ही सुन पाता है। जन्म-जन्म से पुण्य अर्जित करने वाला आत्म-योगी ही उस संगीत को सुन पाता है । इस संगीत को सुनने वाले तो www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy