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________________ डालीं, अन्धा है क्या, दिखता नहीं है? युवक ने कहा - गुनाह माफ़ हो । मैं अपनी प्रेमिका को याद करते हुए चल रहा था कि कहीं वह घर से चली न जाए। इसी याद में मैं अपनी सुधबुध खो बैठा था और आपसे टकरा गया। मुझसे ग़लती हो गई। संत ने कहा - तेरे से इतनी बड़ी ग़लती हो गई है कि तूने मेरा ध्यान भंग कर दिया । युवक ने कहा - महाराज ! आपका ध्यान भंग हो गया, इसके लिए तो मैं क्षमा माँगता हूँ, पर मेरे मन में एक प्रश्न है। संत ने कहा - क्या है तुम्हारा प्रश्न ? युवक ने कहा - ध्यान आपका भी था और ध्यान मेरा भी था। आपको प्रभु का और मुझे अपनी प्रेमिका का ध्यान था। आप भी टकराए, मैं भी टकराया, पर मेरे मन में अब भी प्रेमिका का ध्यान है, पर आपके मन से प्रभु का ध्यान कैसे छूट गया ? जितनी गहराई में प्रेमिका या पत्नी बसी है जब उतनी ही गहराई में प्रभु का निवास होता है तब प्रभु हमारे क़रीब होते हैं। महावीर का मार्ग उन लोगों के लिए नहीं है जो मन से हारे हुए हैं, न ही उनके लिए है जो हार से घबरा कर बैठ जाते हैं । यह तो उनके लिए है जो हार जाएँ तब भी, फिर से अपने पैरों पर खड़े होकर चलना शुरू कर देते हैं। महावीर का मार्ग शांति का मार्ग है, यह आत्मा की सफलता का मार्ग है। सफलता कोई एक दिन में नहीं मिलती है। अब्राहिम लिंकन जो अमेरिका के राष्ट्रपति बने वे पहली बार में ही सफल नहीं हो गए। उनकी असफलता की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि आश्चर्य होता है, लेकिन दाद देनी होगी उनकी हिम्मत और ज़ज़्बे को कि वे अन्ततः राष्ट्रपति बन ही गए । कहते हैं २१ वर्ष की आयु में शादी की लेकिन पत्नी से नहीं पटी, २२ वर्ष की उम्र में वार्ड मेम्बर का चुनाव लड़ा, हार गए। २४ साल की उम्र में दुकान खोली, उसमें घाटा हो गया। २७ साल की आयु में एम. एल. ए. का चुनाव हार गए। ४२ वर्ष की उम्र में पुनः सीनेट का चुनाव हार गए, ४७ साल में उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ा लेकिन नतीजा वही कि हार गए लेकिन ५२ वर्ष की आयु में वही लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति बने। हर सफलता के पीछे विफलता की कहानी होती है लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति व्यक्ति को अन्ततः सफल बनाती ही है। महावीर का मार्ग भी यही समझाना चाहता है। लिंकन अगर पहली या दूसरी हार में हारकर बैठ जाते या ५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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