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________________ कब्रिस्तान बन जाया करता है। जैसे कमरों में लोग रहते हैं ऐसे ही कब्रों में भी लोग रहते हैं, पर कब्रों में रहने वाले लोग आपस में बोलते नहीं, एक-दूसरे के काम आते नहीं। अगर यही हालत कमरों में रहने वाले लोगों की है तो फिर सोचो कि कमरों में और कब्रों में फ़र्क ही क्या रह जाता है ! भाई-भाई के बीच प्रेम हो । लोग ईद के दिन गले मिलते हैं, भाईचारा को गले लगाते हैं। मैं तो कहूँगा - आप रोज सुबह उठकर भाई-भाई गले मिला करो। अगर रोज मिलते शर्म आती हो तो होली-दिवाली, जन्मदिन - उस दिन तो अवश्य गले मिला करो। भाईचारे का पैग़ाम आम इंसान के लिए है, पर उसकी शुरुआत घर से हो, भाई-भाई को गले लगाने से हो। हम भाई-भाई बहुत प्यार से रहते हैं, एक-दूसरे की बहुत इज़्ज़त करते हैं। भाईचारा कोई उपदेश देने के लिए नहीं है, जीने के लिए है। आप इसी शहर की घटना लीजिए - जोधपुर की। ऑल इंडिया शेयर मार्केट के चेयरमैन रहे हैं - आनन्द जी राठी। बड़े अच्छे सज्जन पुरुष हैं। नींव से शिखर तक पहुँचे हैं। उन्होंने अपनी नई कोठी बनाई। गृह-प्रवेश का कार्यक्रम था। बड़ा आयोजन रखा था। गृह-प्रवेश में सम्मिलित होने के लिए उनका छोटा भाई सुरेश जी राठी मुम्बई से जोधपुर आए। सुरेश जी इज दा ग्रेट मैन । बड़े अच्छे व्यक्तित्व हैं। हमारे विचार और साहित्य को जन-जन में फैलाने में इनकी बड़ी उल्लेखनीय भूमिका है। सुरेश जी बड़े भाई के गृहप्रवेश में शामिल होने आए। कोठी देखी, उन्हें बड़ी पसंद आई। छोटे भाई ने बड़े भाई आनंद जी से कहा - भाई साहब! मकान बड़ा जोरदार बनाया। मेरा तो मकान पर जी लुभा गया है। बड़े भाई ने जैसे ही छोटे की ऐसी सकारात्मक टिप्पणी सुनी, तो बड़े भाई वापस गृह-द्वार पर आये। जिस चाबी से गृह-प्रवेश के समय ताला खोला, उससे चाबी का झूमका निकाला और छोटे भाई के हाथ में थमाते हुए कहा - सुरेश! अगर तुझे ये मकान पसंद आ गया तो ले यह मकान तुझे ही दिया। छोटे ने कहा - अरे, मैंने तो भाई साहब केवल मज़ाक किया था।आप तो....! आनंदजी ने कहा - कोठी में तू रहे या मैं रहूँ, इससे क्या फ़र्क पड़ता है। आज से यह तेरा हुआ। इसे कहते हैं भाई-भाई का प्रेम । सुरेश जी आज भी उसी मकान में रहते | 33 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003879
Book TitleGhar ko Kaise Swarg Banaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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