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________________ टकराएगा, इसकी जानकारी उसे पहले से हो जाती है। पर विचारणीय प्रश्न यह है कि मानव चन्द्रलोक तक पहुँचा लेकिन इतने परिश्रम और इतना व्यय करके भी वह वहाँ से क्या लाया? इतने वैज्ञानिकों ने वर्षों तक खोज की, कई लोगों ने अपनी जानें गँवाईं, लेकिन उनसे जरा पूछो तो, वहाँ से वापस आते समय तुम क्या साथ लेकर आए? वे कहेंगे कुछ मिट्टी के नमूने लेकर आए। इतना परिश्रम कर वहाँ पहुँचे और लाए क्या? मिट्टी के ढेले। अब उनसे पूछो इतनी मेहनत के बाद भी अगर तुम मिट्टी के कण ही धरती पर लाए, तो क्या मिट्टी के ढेले पाने के लिए ही इतना परिश्रम किया। मनुष्य की यह क्षमता, जो इन्द्रलोक तक पहुँचने की थी, काश वही अन्तरलोक तक पहुँचाने में मदद करती। मनुष्य की जो क्षमता बाहर कहीं चली जा रही थी, अगर इस चैतन्य को अपने भीतर मोड़ता तो...! चन्द्रलोक से तो वह मिट्टी के ढेले ही लेकर आया, लेकिन अन्तरलोक की यात्रा करने पर निश्चित ही उसे जीवन-जगत् के रहस्य मिल जाते। बाहर के चन्द्र-ग्रह-नक्षत्रों तक तो मनुष्य पहुँच गया, लेकिन स्वयं तक न पहुँच पाया, निज को न खोज पाया। परिणामत: वह चन्द्रलोक से भी मिट्टी के ढेले लेकर पृथ्वी पर वापस आ गया। ध्यान मनुष्य को अन्तोक की यात्रा कराता है। इन्सान, जो अब तक अपनी ऊर्जा/शक्ति का उपयोग केवल बाहर के लिए कर रहा है, अपनी चैतन्य-शक्ति का उपयोग पर-पदार्थों या विज्ञान के आविष्कारों के लिए कर रहा है, काश, वह स्वयं के लिए कुछ कर पाता । महान् वैज्ञानिक आइंसटीन, जिसने न जाने कितने मानवोपयोगी आविष्कार किए, लेकिन स्वयं अज्ञात रहस्य बना रह गया। कहते हैं कि जब वह मृत्यु-शय्या पर था, डॉक्टर ने उससे पूछा, तुम महान् वैज्ञानिक हो। सारी दुनिया, जो अँधेरे में सोती थी तुमने प्रकाश की किरण दी, तुमने उसे विद्युत धारा दी, पर एक बात बताओ, आज तुम मृत्यु के करीब हो। तुमने भलीभाँति जीवन-जगत को देखा है। क्या तुम बताना पसंद करोगे कि अगले जन्म में क्या बनना चाहोगे। आइंसटीन ने कहा, मैं नहीं जानता कि पुनर्जन्म होता है या नहीं, लेकिन अगर पुनः जन्म मिले तो मैं परमात्मा से प्रार्थना करूँगा कि वह मुझे चाहे जो बनाए पर वैज्ञानिक न बनाए। डॉक्टर चकित रह गए। आइंसटीन ने कहा, आज मुझे इस बात का गम है कि मैंने विभिन्न प्रकार के आविष्कार किए लेकिन उस तत्त्व का आविष्कार न कर पाया जिसके इस शरीर से निकल जाने के बाद लोग मुझे दफना देंगे। प्रत्येक वैज्ञानिक के सामने अन्त में यही प्रश्न खड़ा होगा। भला जिसने स्वयं का आविष्कार नहीं किया उसने क्या पाया? जो स्वयं को उपलब्ध नहीं हो पाया, स्वयं को प्राप्त नहीं कर पाया, अपनी चैतन्य-शक्ति को नहीं जान पाया उसने सारी दुनिया 26 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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