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________________ अच्छे नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय । हिम्मत दे, प्रेरित करे, जीत की राह सुझाय । ऐसे लोगों को पास रखो जो हिम्मत दें, हौंसला बढ़ाए, विजय का पथ दरशाए । जो सत्प्रेरक का काम करें, ऐसे लोगों को अपना मित्र बनाओ। अच्छे लोगों के पास बैठो। अच्छे लोगों की ख़िदमत करो, अच्छे लोगों की सोहबत करो । कमियाँ मत देखो, अपने पिता की दो कमियाँ मत देखो कि मेरे पिता ने हमें तब ये दो बातें कही थीं । अरे, दो बातों पर तो हम इतना ग़ौर कर रहे हैं, पर पिताजी ने जो हम पर अब तक 98 उपकार किए, पिताजी 98 दफ़ा हमारे काम आए, हम उसे क्यों भूल जाते हैं । हम सीधी कानूनी धारा नं. 2 क्यों लगा देते हैं ? आदमी केवल 2 के चक्कर में 98 को गँवा देता है । जब भी मूल्य देना हो तो यह मत देखो कि उन्होंने हमसे वे दो कटु बातें कहीं। यह मत देखो कि अहो ! मेरी जेठानी ने आज दो लोगों के बीच मुझ पर टिप्पणी कस दी, बल्कि यह देखो कि मेरी जेठानी बहुत अच्छी है, इसने मेरी डिलेवरी करवाई थी, यह मेरे बच्चों को संभालती है, जब मेरा दूसरा बच्चा हुआ तो मेरे पहले बच्चे को लगातार छह महीने तक मेरी जेठानी ने ही संभाला था, मेरे सर्जरी से बच्चा हुआ था, और इसी ने ही मेरा बच्चा संभाला था। पॉजिटिवनेस, पॉजिटिवनेस, पॉजिटिवनेस - हर हाल में पॉजीटिवनेस । हर हाल में अपने-आप को सकारात्मक रखो । तीसरी बात याद रखो, अपने दिमाग में सदा अच्छे विचारों के बीज बोओ। हमारा दिमाग़ उपजाऊ ज़मीन की तरह है। अच्छे बीज बोओगे, अच्छी फसलें निकलकर आएँगी । बुरे बीज बोओगे, तो बुरी फ़सलों का सामना करना पड़ेगा । अगर आप लोग हमारे पास सत्संग के लिए आ रहे हैं, तो हम लोग आपके दिमाग़ में केवल अच्छे बीज बोने का काम करते हैं । इस विश्वास के साथ कि हमारा दिमाग़ उपजाऊ खेत की तरह है, उसमें अगर हम अच्छे बीज बो देंगे तो आने वाले कल को इसमें से अच्छी फसलें निकलकर आयेंगी और अगर हम इसमें अच्छे बीज नहीं बोयेंगे, तो बुरे बीजों की उपज कैसे होती है, यह तो हमको पता ही है । पहले से ही हमारे भीतर बुराइयाँ भरी पड़ी हैं, बुरे बीज बोए हुए पड़े हैं। तभी तो भिखारी को देख कोई भी जल्दी से दस का नोट नहीं निकालता, बल्कि भिखमंगा और मुफ़्तखोर कहते हुए गालियाँ ही निकालता है। हमारे भीतर 88 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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