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________________ इंसान को गांधी बनाती है, नकारात्मक सोच व्यक्ति को गोड्से। रावण अगर सकारात्मक सोच का मंत्र अपना लेता तो वह रावण नहीं, बल्कि राम के चरित्र को चरितार्थ कर लेता। कहते हैं : जब राम और रावण के बीच युद्ध की वेला आई तो रामजी ने अपनी ओर से राम-सेतु का निर्माण प्रारंभ करवाया। आप सबको याद होगा कि जब राम-सेतु का निर्माण हो रहा था जब वानर लोग राम-नाम लिखे पत्थरों को पानी में डालते थे और पत्थर तैरने लग जाते थे। यह खबर लंका तक पहुँची तो लंकावासियों में बड़ा विद्रोह पैदा हो गया कि राम के नाम में जब इतनी ताक़त है कि पत्थर पर राम का नाम लिख दो तो पत्थर तैरने लग जाता है, तो फिर उस राम में कितनी बडी ताक़त होगी। सभासद रावण के पास पहुँचे और जाकर कहने लगे – राजन् ! लंकावासी विद्रोह पर उतर सकते हैं । उनको लगता है कि राम के नाम में जब इतनी बड़ी ताक़त है तो स्वयं राम में कितनी अधिक ताक़त होगी। राजन! अगर आप चाहते हैं कि लंका में विद्रोह न हो तो आपको भी अपना नाम पत्थर पर लिखना होगा और पत्थर को पानी में तैराना होगा। रावण हिल गया सुनते ही। अब तक ताक़त तो बहुत बटोरी, पर रावण के नाम में इतनी ताक़त नहीं थी जिससे पत्थर पर रावण लिखा जाये और पत्थर को पानी में छोड़े और पत्थर पानी में तैरने लग जाये। सभासदों ने कहा - राजन् ! सोच लीजिये एक मिनट के लिए। रावण ने एक मिनट धैर्य से सोचा ओर सोच कर कहा कि ठीक है, हम भी पत्थर को पानी में तिरायेंगे । बुला लो सारे लंकावासियों को समुद्र के तट पर, कल सुबह चलते हैं। अगले दिन सुबह सारे लंकावासी रावण की जय-जयकार करते हुए पहुँच गये समुद्र-तट पर। मन्दोदरी राजमहल में खडी-खडी सोच रही थी कि राम का पत्थर तैरता है, बात समझ में आती है क्योंकि राम के पीछे शील की शक्ति है, सत्य और धर्म की ताक़त है, पर रावण के नाम का पत्थर तैरेगा कैसे? वह भी उत्सुकतावश देखने लगी। रावण पहुँच गया, पत्थर उठा लिया, पत्थर के ऊपर रावण का नाम लिख दिया गया, रावण ने हाथ जोड़े और पत्थर को पानी में छोड़ दिया।क्या हुआ? डूब गया? अगर डूब जाता तो रावण का समापन उसी क्षण हो चुका होता, पर पत्थर डूबा नहीं, तैर गया। जैसे ही पत्थर तैरा कि रावण की जय-जयकार हो गई। रावण गर्वोन्नत होकर अपने दस चेहरों को लिये वापस राजमहल में आया। आखिर उसके नाम का पत्थर जो तिर गया था। | 77 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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