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________________ सकारात्मक सोच से बढ़कर कोई धर्म नहीं होता और नकारात्मक सोच से बढकर कोई अधर्म नहीं होता। सकारात्मक सोच से बढ़कर कोई पुण्य नहीं होता और नकारात्मक सोच से बढ़कर कोई पाप नहीं होता। यह तो वह मंत्र है, वह दिव्य रास्ता है जिस पर चलने वाले हर व्यक्ति को रोज़ाना फूल ही फूल नज़र आते हैं। भला लड़ाई तो तब होगी जब हम आधे गिलास को खाली देखेंगे, पर वहाँ पर तो हमेशा समझौता ही समझौता होगा जहाँ पर हम आधा गिलास को सदा भरा देखेंगे। अगर बहरानी के पीहर से दो किलो मिठाई आई और अगर हम कहेंगे, 'अरे! भेजा क्या है? केवल दो किलो मिठाई भेजी है।' हमारी यह नकारात्मक सोच हमारी बहरानी के मन में खटास घोल देगी और वहीं अगर हम कहेंगे 'अरे! देखो भई, देखो। लाख रुपये की बेटी दे दी, पढ़ा - लिखाकर तैयार करके हमें बेटी दी और ऊपर से रोजाना मिठाइयाँ भी भेजते रहते हैं।' बहरानी जैसे ही इन शब्दों को सुनेगी तो कहेगी, अहो ! मेरे पापा कितने अच्छे हैं ! जो केवल दो मिलो मिठाई के आने पर भी कहते हैं कि कितना-कितना माल भेजा है। अरे इतना सम्पन्न घर है, इनके लिए दो किलो मिठाई की क्या औकात? फिर भी यह मेरे पापा का सकारात्मक दृष्टिकोण, मेरे पापा के सकारात्मक व्यवहार का परिणाम कि ये मेरी तारीफ़ कर रहे हैं, दो किलो मिठाई की भी प्रशंसा कर रहे हैं।' मिठाई वही है, दो किलो। दो किलो को हम ढाई किलो कर नहीं सकते, पर अगर हम अपनी सोच को, अपनी भाषा को सकारात्मक बना लें तो उसी दो किलो मिठाई से हम घर को ख़ुशहाली से भर सकते हैं, नहीं तो वही दो किलो मिठाई पाकर हम घर में खटास और ज़हर घोल बैठते हैं। जिंदगी में चाहने के नाम पर एक ही तो चीज़ चाहिए कि हमारी सोच ठीक हो जाए, बाकी किसी के घर में कोई कमी नहीं है। धर्म के रास्ते भी आपको ढेर सारे सुझाए गए हैं - सामायिक, पूजा, प्रार्थना, प्रतिक्रमण, पर एक ऐसा रास्ता है जिसके अभाव में हमारी सामायिकें व्यर्थ हो जाती हैं। जिसके अभाव में बहरानी कहती है -'क्या मम्मीजी सामायिक करके आये हैं। सामायिक करके आते ही घर में झगड़ा शुरू कर देती है। यानी हमें सामायिकों का रास्ता तो खूब मिल गया, पर जब तक सकारात्मक सोच का रास्ता नहीं मिलेगा, सामायिक ( एक प्रकार का व्रत जिसमें एक घंटे तक समता-भाव की आराधना होती है।) करके भी तुम आलोचना के पात्र बनोगे। प्रतिक्रमण करके भी अपने पापों को दोहराते रहोगे। पूजा करके भी दूध में पानी मिलाने का धंधा करते रहोगे। 74| Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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