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________________ पहला नियम यह कि अगर पेंसिल को उपयोगी बनाना है तो अपने आपको समर्पित करो; दूसरों के हाथों में अपने आप को सौंपो। दूसरा नियम - पेंसिल को अगर उपयोगी बनना है तो सहनशीलता को विकसित करना पड़ेगा, क्योंकि गुरुजी के हाथों में जाते ही पेंसिल की छिलाई होगी। पेंसिल का दूसरा नियम, हमें सहनशीलता सिखाता है। सहन करने के लिए तैयार रहो। गुरुजी डंडा भी मारेंगे तब भी, झेलने को तैयार रहो। पहले के ज़माने में अगर कोई बच्चा पढ़कर आता तो तीसरी की गणित का पढ़ा हुआ पहाड़ा आज भी इस 70 की उम्र में सुना जा सकता है, पर आपने दो साल पहले भी एम.बी.ए. में कौन-कौन-से फार्मूले पढ़े थे वे आप आज नहीं सुना सकते। क्योंकि छिलाई नहीं हुई, केवल पढ़ाई हुई। हम छोटे थे तो गणित के पहाड़े बोलाए जाते थे, एक ग़लती हो जाती तो मुर्गा बनाया जाता, दूसरी बार ग़लती हो जाती तो किताबों का बस्ता पीठ पर रख दिया जाता था। मुर्गा बने रहो 15 मिनट तक।और अगर बस्ता नीचे गिर गया तो पीछे से एक बेंत जोर से आकर पड़ती, हिल जाता आदमी। वे जो बेंतें खा-खाकर पढ़लिखकर तैयार हुए वे 80 साल के हो जायेंगे तब भी, जैसे बेंतों को भूलना कठिन होता है वैसे ही तीसरी क्लास की पढ़ी हुई पढ़ाई को भी भूल नहीं पाएंगे। __ अगर बीज को केवल पानी ही पानी मिलता रहे, धूप न मिले तो बीज सड़ जाएगा। बीज को अगर वट वृक्ष की ऊँचाई तक ले जाना है तो उसको धूप की मार भी सहन करनी होगी। पहला नियम समर्पण, दूसरा सहनशीलता। तीसरा है - स्वनिहित शक्ति। पेंसिल के भीतर ही पेंसिल की ताक़त रहती है, पेंसिल के बाहर नहीं। पेंसिल के अन्दर क्या है? शीशा। शीशा अन्दर है। हमारी भी प्रतिभा कहीं बाजार से खरीद कर नहीं आती। हमारी प्रतिभाओं को कहीं किताबों से घोट-घोट कर ठंडाई की तरह नहीं पिया जाता। प्रतिभा हर व्यक्ति के भीतर है। सबकी अपनी-अपनी प्रतिभा होती है। बच्चों को देख लो, आप अपने बेटे-पोते को देख लो किसी के घर में पोता बड़ा सयाना होता है, किसी के घर में पोता दिन भर रोता रहता है। किसी के घर में पोता पेंसिल उठाकर दीवारों पर रगड़ता रहता है। किसी के घर में पोता चूना खोदता है और खाता रहता है। किसी के घर में बच्चा कैसा निकलता है तो किसी के घर में कैसा! सबकी अपनी-अपनी प्रतिभाएँ हैं । पूत के पाँव तो पालने में ही पता चल जाते हैं। ऐसा हुआ। एक पिता ने सोचा कि देखू, अपने बेटे की प्रतिभा कैसी है? सुना है कि पूत के पाँव पालने में पता चल जाते हैं, देखता हूँ कैसा है इसका टेलेंट? | 59 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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