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________________ पास प्रतिभा है। मैं इसीलिए आप लोगों के बीच बैठकर आने वाले कल के भारत का निर्माण कर रहा हूँ, आने वाले कल के समाज का निर्माण कर रहा हूँ और इसके लिए आपके भीतर छिपी प्रतिभाओं को जगा रहा हूँ। मैं प्रतिभाओं को जागृत कर रहा हूँ। मैं जोश जगा रहा हूँ, आपकी आत्मा जगा रहा हूँ, वही काम कर रहा हूँ जो काम कभी भारत में विवेकानंद ने किया, जो काम कभी महाभारत के मैदान में, कुरुक्षेत्र में अर्जुन की सोई हुई चेतना को जगाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने किया था । याद रखिएगा, अगर हम अपनी औकात न बना पाए, अगर हम अपने पाँव पर खड़े न हो पाए, अगर हम अपना केरियर न बना पाए, अगर हम अपना टेलेंट न जगा पाए तो गली का कुत्ता भी हमें नहीं पूछेगा। समाज के लीडर तो क्या पूछेंगे ? कोई एम.पी. हमें मंच पर तो क्या बुलाएगा, कोई छुटभैय्या भी नहीं पूछेगा। माता सरस्वती किसी के भी घर पर तो आरती उतारती हुई आएगी नहीं और कहेगी नहीं कि बेटा पी ले, संजीवनी औषधि की तरह पी ले, ब्राह्मी की घुट्टी की तरह पी ले, की जन्मघुट्टी की तरह पी ले, यह ज्ञान पी ले, यह केरियर पी ले। नहीं, यहाँ पर वे ही लोग पाते हैं जो अपनी-अपनी प्रतिभा, अपने-अपने टेलेंट को समझते हैं, जागृत करते हैं। सारे लोग अपने-अपने टेलेंट को पहचानें । कहते हैं : नागौर नरेश के पास किसी समय यह समस्या आ गई कि अपने प्रधान मंत्री पद के लिए किसका चयन किया जाए। उन्होंने कई प्रतिभागियों का चयन किया और आखिर निर्णय पर पहुँचे कि जोधपुर के सिंघवी जी को अपना प्रधान मंत्री नियुक्त किया जाए। नागौर की एक खास जाति के लोग एकत्रित होकर आए और कहने लगे - राजन् ! बाहर के नगर के व्यक्ति को प्रधान मंत्री नियुक्त किया जा रहा है, क्या हमारे शहर में कंगालियत आ गई है? हमारे यहाँ देखिए यह महानुभाव, नाम नहीं लूँगा उनका, बड़े ज्ञानी हैं, बड़े वैदुष्य प्रतिभा सम्पन्न हैं । आप इन्हें नियुक्त करें। नागौर नरेश ने कहा- भाई मैं किसी के दबाव में आकर कोई काम नहीं करूँगा, काबिलियत है तो मुझे ऐसा करने में कहाँ ऐतराज होगा ! परीक्षा करनी चाहिए। राजा बोले- कल सुबह आ जाइएगा । अगले दिन सुबह राजा उम्मीदवारों को नवरत्नों से सजी हुई एक - एक डिबिया थमाई और कहा - इस डिबिया को लेकर तुम दोनों यहाँ से जाओ । एक व्यक्ति जाए जयपुर राजा के पास और एक व्यक्ति जाए उदयपुर महाराणा Jain Education International For Personal & Private Use Only | 55 www.jainelibrary.org
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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