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________________ को भी देखकर डर जाते हैं । हिन्दुस्तान की महिलाओं की तो मत पूछो। ये तो छिपकली से भी डरती हैं, छिपकली तो तुमसे डर रही है, तुम उससे डर रहे हो ! अभी दो दिन पहले बगल में किसी घर में साँप आ गया। माँजी आई और कहने लगी कि बापजी मेरे घर में साँप आ गया। मैंने कहा श्रावण का सोमवार है, महादेव जी आ गए। इसमें घबराने की क्या बात है ? वह कहने लगी - रात कैसी निकलेगी। मैंने कहा इतना ही डर है तो किसी को बुला कर निकलवा दो, वह तो ऐसे ही निकल जाता है। अब सपेरे को बुलाकर लाये, 350 रुपये खर्च किए और साँप को बाहर निकाला। मैंने कहा वह भी तो इंसान था । उसने निकाला, तुम भी निकाल सकते थे । नहीं... नहीं... डर लगता है । चूहे और छिपकली से डरने वाला हिन्दुस्तान ! 1 सड़क पर चलता है तो इंकलाब जिंदाबाद के नारों के साथ झंडे लेकर चलता है और घर में आता है तो छिपकली और चूहे से भी डरता है । वह हिन्दुस्तान कि जिसके सीने पर कभी महाभारत सरीखे युद्ध लड़े गए थे और जहाँ पर भगवान ने कभी शंखनाद करके भीतर सोया हुआ पुरुषत्व जगाया था। अब फिर से ऐसे ही किसी भगवान की ज़रूरत है जो हिन्दुस्तान की सोई हुई महिलाओं की आत्मा को जगा दे। -- क्या करें कि जग जाए आत्म-विश्वास, छोटे-छोटे कुछ व्यावहारिक प्रयोग लीजिए। अगर हमें अपना आत्म-विश्वास जगाना है, तो पहला काम यह कीजिए कि सुबह जैसे ही आँख खुले, खुलते ही फुर्ती के साथ उठिए । आलसी या मुर्दे की तरह मत उठिए। मम्मी जगाती है - बेटा, उठ रे । हम मुँह बिगाड़ कर कहते हैं ऊं...ऊं, मम्मी फिर कहती है - उठ ना । आप फिर कहते हैं ऊं...ऊं । ऐसे तो कब्रिस्तान के मुर्दे उठते हैं। कृपया ऐसे मत उठो कि विधाता नाराज हो जाए। ऐसे उठो कि घर में रहने वाले लोग चुटकी बजाएँ और आप उठ जाएँ । आखिर हम लोग अलार्म लगा-लगाकर कब तक उठते रहेंगे। खुद के भीतर आत्म-विश्वास लाओ। रात को सोते समय घड़ी को नहीं, अपने तकिये को ही कह दो कि हे तकिया देवता, सुबह साढ़े पाँच बजे जगा देना | आज प्रयोग करके देख लेना कल सुबह आपकी आँख न खुले तो मुझसे कह देना । देवता तो अपने साथ हैं, कोई ऊपर से थोड़े ही बुलाने पड़ते हैं । हमारा आत्म-विश्वास ही हमारा देवता है । जैसे ही सुबह आँख खुले, खुलते ही फुर्ती से उठ जाइए। बिस्तर और तकिये को जितना जल्दी हो सके अपने आप से अलग कर दीजिए। जैसे जूता अगर नया | 125 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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