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________________ अर्जित किया उस ज्ञान की पुनरावृत्ति होगी, वह ज्ञान परिपक्व होगा।आप टीचिंग करना सीखेंगे और अपने मासिक खर्चे की व्यवस्था करने में भी खुद सफल हो जायेंगे। इस देश के अगर सारे छात्र 10वीं पास करने के बाद टीचिंग करना शुरू कर दें तो लोगों को कभी बी.एड. करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। दसवीं पास करते ही टीचिंग का काम शुरू कर दिया तो कोई भी बच्चा अपने माँ-बाप के लिए भार नहीं बनेगा और हर कोई बच्चा आने वाली पीढ़ी को तैयार करने में अपनी अहं भूमिका निभाएगा। सोलह साल की उम्र होते ही आप अपने देश के लिए अपनी आहुति अर्पित करने में सफल हो जायेंगे। इसीलिए कहता हूँ- ज़ज़्बा जगाओ, जनन जगाओ। ग़रीब हैं पर अपने मन को ग़रीब मत होने दो। शरीर भले ही पंगु हो, पर मन को पंगु और अपाहिज मत होने दो। अपने मन को मज़बूत रखो। जिन लोगों के भीतर मन की मज़बूती होती है वे लोग ही अपने जीवन की नौका को हँसते-गाते पार लगाने में सफल होते हैं। बाकी तो मन डूबा कि समझो जिंदगी डूबी और मन तिरा कि जिंदगी तिरी। ____ आज की समस्या तन की बीमारियों की कम, मन की बीमारियों की ज़्यादा है। लोग शरीर से बूढ़े बाद में होते हैं, मन से पहले हो जाते हैं, जबकि मन अभी बूढ़ा नहीं हुआ है। साठ के हो गए अब तो क्या कर सकते हैं, अब तो सत्तर के हो गए, अब तो जाने की वेला आ गई। अब तो अस्सी है। बस इंतजारी कर रहे हैं। ले देकर हमारे देश के लोग मौत के बारे में सोचते रहते हैं. ज़िंदगी के बारे में नहीं सोचते । मैं तो केवल जीवन के गीत गाता हूँ। जीवन को स्वर्ग बनाता हूँ,जीवन के पाठ पढ़ाता हूँ और जीवन की गीता लिखता हूँ। मरेंगे, निश्चित तौर पर हम मरेंगे। महावीर भी मरे, राम भी मरे, कृष्ण भी मरे, मैं भी मरूँगा, आप भी मरेंगे। पर मरने से पहले क्यों मरें? बुढ़ापा आयेगा तो आयेगा एक दिन के लिए बूढ़े बनेंगे। मैं तो कहूँगा केवल एक मिनट के लिए बूढ़े बनो। बूढ़े हो गए यानी अब मर-मरा कर पूरे हो जाओ। बुढ़ापे को दस साल तक मत ढोओ। दस साल तो जिंदगी को जीओ।खुद को बूढ़ा मान चुके अगर आज भी अपनी जिंदगी में जवानी का जोश लेकर आ जायें, रोज़ ठुमकना शुरू कर दे, रोज़ अगर डांस करना शुरू कर दें, अपने भीतर जोश जगा दें तो मात्र सत्ताईस दिन में वे अपने बुढ़ापे को पराजित करने में सफल हो जायेंगे। मात्र सत्ताईस दिन में। है अगर दूर मंज़िल तो क्या, रास्ता भी है मुश्किल तो क्या, रात तारों भरी ना मिले तो, दिल का दीपक जलाना पड़ेगा। | 121 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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