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________________ युधिष्ठिर ने फिर गुरु द्रोणाचार्य के पाँव छुए और प्रणाम किया। गुरु द्रोणाचार्य ने कहा - चक्रवर्ती भव । कृपाचार्य ने भी प्रणाम के बदले ऐसा ही आशीर्वाद दिया। दुर्योधन हिल गया। उसने क्रोध में तमतमाते हुए कहा लड़ तो रहे हैं आप मेरे पक्ष से और विजय की कामना कर रहे हैं अगले के लिए? भीष्म पितामह ने कहा- मूर्ख, अगर यह युधिष्ठिर मेरे सामने न आता तो मैं अपने हाथों से इसका वध करता पर इसने प्रणाम करके चिरायु होने का वरदान मुझसे प्राप्त कर लिया है। ऐसा करके इसने मेरा दिल जीत लिया । यह युधिष्ठिर की महानता है कि युधिष्ठिर युद्ध करने से पहले अपने बड़े-बुजुर्गों को नहीं भूला । अरे मूर्ख तू हमें कहता है कि हमने इसे विजयी होने का आशीर्वाद क्यों दिया? दुर्योधन, अगर तू भी युद्ध करने से पहले अपने बड़े भाई युधिष्ठिर को प्रणाम करने के लिए जाता तो यह भी तुम्हें वही आशीर्वाद देता जो मैंने उसे दिया है क्योंकि प्रणाम का परिणाम हमेशा आशीर्वाद ही होता है। जब भी हम किसी के प्रति शिष्टता से पेश आते हैं, अभिवादन करते हैं तो अभिवादन के बदले हमेशा अभिनंदन ही लौटकर आता है। बोलना बाद में है, पहले मुख - मुद्रा ठीक कीजिए। उसके बाद प्रणाम कीजिए, अभिवादन कीजिए । अब हम चलते हैं बोलने की तरफ, क्योंकि उससे पहले अगर हम बोल बैठे तो पहला स्टेप ग़लत हो जाता। पहला स्टेप यह है कि अब आप जो भी बोलें, जब भी बोलें, जैसा भी बोलें, अदब से बोलें। यह मत देखिए कि मैं बड़े से बोल रहा हूँ कि छोटे से बोल रहा हूँ । मूल्य अगले का नहीं होता, मूल्य हमारे स्वयं का होता है कि हम अदब से पेश आए कि बेअदब से । मैं तो कहूँगा बड़ों के साथ ही नहीं, अपने बच्चों के साथ भी अदब से पेश आएँ । मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन की सबसे बड़ी विशेषता थी उनका अदब, उनकी मान-मर्यादा, काण - कायदा । अगर आप सासू से बोलें तब भी अदब से, अगर आप सासू हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि बहू से मनमाने बोलें। सासू हैं तो बहू से अदब से बोलें। जीवन का यह उसूल हमेशा याद रखें कि अदब के बदले में अदब लौटकर आती है और बेअदबी के बदले में बेअदबी ही लौटकर आया करती है । - आजकल एक फैशन चल पड़ी है - हर पति अपनी पत्नी को तुम कहता है । कल ही एक सज्जन पास में बैठे थे घरवाली को तुम कह रहे थे और साली को आप कह रहे थे। जबकि साली छोटी थी। मैंने कहा आप घरवाली को तुम कहते Jain Education International For Personal & Private Use Only | 105 www.jainelibrary.org
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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