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________________ एक लोटा ठंडा मीठा पानी है क्या तुम पीना चाहोगे ?' 'तुम यकायक पानी देखकर एकदम प्रसन्न होकर पानी पीना चाहोगे लेकिन युवक तुमसे इस पानी की कीमत मांगेगा। तब तुम क्या करोगे ?' सम्राट ने कहा एक स्वर्ण मुद्रा दे दूंगा। फ़क़ीर ने कहा, अगर तब भी वह पानी न दे तो ? सम्राट ने कहा, 'दस स्वर्ण मुद्रा दे दूंगा।' फ़क़ीर ने कहा, 'अगर तब भी वह पानी न दे तो ?' सम्राट ने कहा, ' सौ स्वर्ण मुद्राएं दे दूंगा फिर भी नहीं देगा तो हजार या लाख स्वर्ण मुद्राएं भी दे दूंगा।' फकीर ने पूछा, 'अगर तब भी वह पानी न दे तो ?' सम्राट ने कहा, 'मरता क्या न करता, मैं अपना अंतिम दाँव खेलूंगा, क्योंकि प्यास जरूर बुझाऊंगा, उसे आधा साम्राज्य दे दूंगा और एक लोटा पानी ले लूंगा।' फ़क़ीर ने कहा, 'तुम्हारा आधा साम्राज्य भी अगर एक लोटा पानी न दिला सके और वह युवक फिर भी इनकार कर दे तो ?' सम्राट ने कहा, 'तब मैं उसी से पूछ लूंगा कि वह क्या कीमत चाहता है।' फ़क़ीर ने कहा, 'वह कहे कि मुझे तुम्हारा पूरा साम्राज्य चाहिए तब तुम्हें एक लोटा पानी मिल सकता है। एक ओर तुम्हारा जीवन दूसरी ओर पूरा राज्य, बोलो सम्राट सोचकर निर्णय दो कि तब तुम क्या करोगे ?' कुछ क्षणों तक सम्राट मौन रहा। फ़क़ीर ने पूछा, 'क्या तुम मना कर दोगे ?' सम्राट ने कहा, 'नहीं। सत्ता और साम्राज्य से भी बड़ी आदमी की जिंदगी होती है और जिंदगी बचाने के लिए सत्ता और साम्राज्य की कुर्बानी दी जा सकती है।' फ़क़ीर साहब, 'तब मैं अपनी ज़िंदगी और प्राणों को बचाने के लिए अपना सारा साम्राज्य उस युवक के नाम करने को तैयार हो जाऊंगा।' फ़क़ीर मुस्कुराये और बोले, 'तो यही है तुम्हारे इस तथाकथित अकूत वैभव और ऐश्वर्य का मोल। पता है तुम्हारे इस सम्पूर्ण राज्य का मोल कितना है ? एक लोटा पानी जितना । मैं तुम्हें यही बोध देना चाहता था कि तुम जो इतना यशोगान कर रहे हो इसकी कीमत केवल एक लोटा पानी है । धन नहीं, जीवन-धन जिसने अपने जीवन का मूल्यांकन करना सीख लिया है, जिसने अपने जीवन की महानताओं को पहचान लिया है, जिसने अपनी मूल्यवत्ता जान ली है वह दुनिया की सम्पत्ति से ऊपर अपने जीवन को रखेगा इस जीवन का उपयोग करेगा और जीवन को बचाने की कोशिश करेगा। याद रखें, धन से सब कुछ पाया जा सकता है, सत्ता से सब कुछ पाया जा सकता है लेकिन इनसे जीवन नहीं पाया जा सकता। सत्ता और वैभव जीवन से अधिक महान नहीं हो सकते । याद है ना जब सिकंदर भारत - विजय पर आया था तब उसे अस्सी वर्षीय वृद्धा मिली । उसने सिकंदर पूछा, 'तुम कौन हो और कहाँ से आए हो ?' सिकंदर ने कहा, 'मैं सिकंदर महान हूँ, विश्वविजेता हूँ और यूनान से आया हूँ।' वृद्धा ने कहा, 'क्यों आया है ?' उसने कहा, 'विश्व - विजय के अंतर्गत भारत को जीतने के लिए आया हूँ।' वृद्धा ने कहा, 'जब भारत को जीत लेगा तब क्या करेगा ? ' ' और जो पड़ौसी देश हैं उन्हें जीतूंगा।' 'उसके बाद क्या करेगा ?' 'सारी दुनिया को जीत लूँगा ।' 'उसके बाद क्या करेगा ?' वृद्धा ने फिर पूछा। सिकंदर ने कहा, 'उसके बाद सुख की रोटी खाऊंगा।' वृद्धा ने कहा, 'आज तुझे कौन-सी सुख की रोटी की कमी है जो जान बूझकर दुःख की रोटी की ओर क़दम बढ़ा रहा है। याद Jain Education International 160 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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