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________________ E N GLISARSHARMessarma बुढापे को ऐसे कीजिए सार्थक बुढ़ापे को भुनभुनाते हुए जीने की बजाय गुनगुनाते हुए जियें। मनुष्य का जीवन सूर्य की तरह गतिमान है। सूर्योदय के पूर्व भोर की प्यारी-सी सुबह को माँ के गर्भ में हमारा आगमन समझें । सूर्योदय हमारा जन्म है, दोपहर जवानी है और सांझ हमारा बुढ़ापा है। रात तो जीवन की कहानी के समापन का प्रतीक है। जीवन-मृत्यु दोनों सत्य यह जीवन का परम सत्य है कि जिसका जन्म है उसकी मृत्यु है, यौवन है तो बुढ़ापा है। जिसकी मृत्यु है उसके जन्म की संभावना है। जन्म, जरा, रोग और मृत्यु की धारा में मनुष्य-जाति तो क्या, ब्रह्माण्ड के हर प्राणी के साथ करोड़ों वर्षों से यही सब होता रहा है। सुखदायी होती है जवानी और सही ढंग से जीना न आए तो बड़ी पीड़ादायी होती है बुढ़ापे की कहानी। जवानी तो बहुत सुख से बीत जाती है, लेकिन जवानी का सुख बुढ़ापे में कायम न रह सके तो बुढ़ापा कष्टदायी हो जाता है। जवानी तो सभी जी लेते हैं, पर जो जवानी में बुढ़ापे की सही व्यवस्था कर लेते हैं, उनका बुढ़ापा स्वर्णमयी हो जाता है। बुढ़ापा न तो जीवन के समापन की शुरुआत है और न ही जीवन का कोई इतिवृत्त है और न ही जीवन का अभिशाप है। बुढ़ापा तो जीवन का सुनहरा अध्याय है। जिसे जीवन जीना आया, जिसने जीवन के उसूल जाने और जीवन की मौलिकता को समझने का प्रयास किया, उसके लिए बुढ़ापा अनुभवों से भरा हुआ जीवन होता है जिसमें जाने हए सत्य को जीने का प्रयास करता है। हर किसी दीर्घजीवी व्यक्ति के लिए बढापा आना तय न समझें कि हमें ही बुढ़ापा आया है या आने वाला है। महावीर को भी बुढ़ापा आया था, राम और कृष्ण भी बूढ़े हुए थे। दुनिया में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो लम्बे अर्से तक जीया हो और बुढ़ापा न आया हो। भले ही व्यक्ति जन्म, जरा (बुढ़ापा), मृत्यु के निवारण के लिए प्रार्थना करता है पर ये सब स्वाभाविक सहज प्रक्रिया हैं। 125 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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