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४५५ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. जानुबले कास्सग्गरह्या, विचस्या देश विदेश ॥खमा खमा केवल लडं, पूजो जानु नरेश ॥२॥ लोकांतिक वचने करी, वरस्या वरसी दान ॥ करकंडे प्रनु पूजना, पूजो नवि बहु मान ॥३॥ मान गयुं दोय अंशथी, देखी वीरज अनंत ॥नुजाबले नवजल तस्या, पूजो खंध महंत ॥ ४ ॥ सिझशिला गुणउज्ज्वली, लोकांते जगवंत ॥वसीया तेणे कारण नवि, शिरशिखा पूजंत ॥५॥ तीर्थंकरपद पुण्यश्री, विजुवन जन सेवंत ॥ त्रिजुवनतिलक समा प्रजु, नाल तिलक जयवंत ॥ ६॥ सोल पहोर प्रजुदेशना, कंठविवर वरतुल ॥ मधुर ध्वनि सुर नर सुणे, तेणे गले तिलक अमूल्य ॥ ७॥ हृदयकमल उपशम बले, बाल्या राग ने रोष ॥ हीम दहे वनखंमने, हृदयतिलक संतोष ॥ ७॥ रत्नत्रयी गुणउज्ज्वली, सकल सुगुण विशराम ॥ नाभिकमलनी पूजना, करतां अविचल धाम ॥ ए ॥ उपदेशक नव तत्वना, तेणे नव अंग जिणंद ॥ पूजो बहुविध रागथी, कहे शुजवीर मुणींद॥१॥इति श्रीजिन नवअंगपूजन दोहा॥ ॥अथ श्रीदेवचंजीकृत स्नात्रपूजाविधि प्रारंजः ॥ ॥प्रथम निस्सहीपूर्वक श्रीदेरासर मध्ये श्रावी अंग
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