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विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम.
संगण सुपीजीए ॥ जिन० ॥ २ ॥ बत्रीश रतिकरे वत्रीश चैत्ये, प्रभु वंदी सुर हर्षीजीए ॥ जिन॥ तीर्थो - दकना कलश जरीने, जिना निषेक करीजीए॥ जिनव ॥ ३ ॥ केसर चंदने रिहा पूजी, फूल टोमर कंठे ठवीजीए ॥ जिन० ॥ कनकपत्र कोरी करीने, बच्चे बच्चे रत्न जमीजीए ॥ जिन० ॥ ४ ॥ सुर परे जविजन पूजा रचावी, लखमीनो लाहो लीजीए ॥ जिन० ॥ कहे धर्मचंद्र जिनेश्वर साहिब, दवे शिवसुख मुज दीजीए ॥ जिन० ॥ ५ ॥ काव्यं ॥ स्नात० ॥ इति षष्ठानिषेके षष्ठ पूजा समाप्ता ॥ ६ ॥
॥ अथ सप्तम पूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ सोहम ईशानेंद्रनी, अग्रमहिषी (आठ) आठ ॥ तेना जड जे सोलमां, प्रभुचैत्यनो ठाठ ॥ १ ॥ ॥ ढाल आठमी ॥ कुमखडानी देशी ॥ ॥ ए द्वीपना मध्य जागमां रे, चार विदिशे जे चार ॥ प्रभु उपदेशीया ॥ रतिकर सर्व रतनमयी रे, सहस्सना उंचा धार ॥ प्रभु० ॥ १ ॥ दश सहस्स लांबा पहोला रे, अढी जोयण कंद ॥ प्रभु० ॥ एकत्रीश सदस्स उपर बसें रे, त्रेवीश कड़े जिनचंद ॥ प्रभु० ॥ २ ॥
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