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________________ 'महावीर्य महावीर जयवन्त हों, जयवन्त हों, जयवन्त हो ।' चरणानत होकर सौधर्मेन्द्र अन्तर्धान हो गया । जाने किस मूकोमला प्रिया की एक तेजोवलय-सी बाँह ने मुझे चारों ओर से आवरित कर लिया । एक अमोघ मुरक्षा-बोध में देह-भान खो गया। छह दिन, छह रात बीत गये । इस शरीर ने अन्न-जल ग्रहण नहीं किया है। भूख-प्यास वावरी-सी मेरी परकम्मा करती माथ चल रही हैं । मैंने ज़रा भी उन्हें रोका-टोका नहीं, उनका निरोध नहीं किया । मैं अपने भाव में हूँ, तो वे अपने भाव में हैं। प्रकृति में अपनी जगह रह कर वे अपना काम कर रही हैं। मैं अपनी जगह अस्खलित रह कर उनके तीव्र परिणमन को महेसूस रहा हूँ। अभी कल ही यात्रापथ में, कहीं एक निर्मल सरोवर लहराता दीखा था। मेरी प्यास उस ओर दौड़ी थी : वह व्याकुल होकर उन लहरों में डुबकी खा गई। सरोवर दौड़ा आया और मेरे अंगांगों में लहराने लगा। मैंने उसे रोका-टोका नहीं। वह मुझ में अन्तर्भूत हो गया। राह की एक नदी मेरे सूखे ओंठ देख अकुला उठी। ओठों पर आ लगी, प्याले की तरह। मैंने उसे पिया नहीं : मुस्करा भर दिया । तो वह पगली मुझे ही पी गई । वह तृप्त हुई : मैं अधिक आत्मस्थ हुआ ! - - - ___ आज सवेरे कोल्लाग ग्राम के परिसर से अटन करता गुज़र रहा हूँ। कोई प्रयोजन नहीं, कोई लक्ष्य नहीं : बस एक महागति से मेरे चरण धावमान हैं। पथवर्ती एक पनघट पर पानी खींचती एक युवती दूसरी से कह रही है : 'बहुल ब्राह्मण के घर आज बड़ी भारी रसोई का पाक हुआ है। सारे सन्निवेश का न्योता है । देवभोग व्यंजनों के थाल लगे हैं। पर सुन री, बहुल उज्ज्वल अन्तर्वासक पहने, श्रीफल-कलश लिये द्वार पर जाने किस अतिथि की प्रतीक्षा में खड़ा है। पूर्वान्ह हो आया, वह हिलने का नाम नहीं लेता। • • विचित्र है न !' • • ब्राह्मण ! तुम्हरा अध:पतन मुझे असह्य है। तुम्हारे बिना ब्रह्मज्योति को लोक-मानस में कौन संचारेगा? दुरात्माओं ने तुम्हारे यज्ञ को अपावन कर दिया है। आज मेरी क्षुधा की अग्नि तुम्हारे हवनकुण्ड में स्थापित हो । तुम्हारे सर्वस्व की आहुति के बिना वह शान्त नहीं होगी। प्रस्तुत हो भूदेव · · · ? ___ और मैंने कोल्लाग ग्राम के राजमार्ग पर अपने को चलते हुए देखा । एक विशाल भवन के द्वार पर सहसा ही आवाहन सुनाई पड़ा : _ 'भो स्वामिन्, तिष्ठः तिष्ठः आहार-जल शुद्ध है - आहार-जल शुद्ध Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003846
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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