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________________ ६८८ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका करानेके पश्चात् आगे हम क्रमानुसार ही श्वेताम्बरीय अङ्गतर आगमों का परिचय करायेंगे। बारह उपांग बारह अगोंके बारह ही उपांग है। एक एक अङ्ग का एक एक उपांग है। कतिपय अगोंमें उपांगोंका उल्लेख है तो उपांगों में भी अंगों और उपांगोंका निर्देश मिलता है। किन्तु अगों और उपांगोंका सम्बन्ध केवल बाहिरी है। डा० वेबरका कहना था कि किसी एक हाथने अगों उपांगोंको वह रूप दिया था जिसमें वह आज पाये जाते हैं। डा० विन्टर निट्सने लिखा है कि साहित्यक दृष्टि से बारह उपांग विशेष आकर्षक नहीं हैं। - १ प्रथम उपांग औपपातिकके दो भाग है। दूसरा भाग प्रथमके तृतीयांशके लगभग है। प्रथम भागमें भगवान् महावीर का वर्णन है। विम्बसारका पुत्र कुणिक भगवान् महावीर. के पास उपदेश सुनने के लिये जाता है। उपदेशमें अच्छे और बुरे कर्मोके करनेसे चारों गतियोंमें जन्म लेनेका तथा साधु और गृहस्थके कर्तव्योंका निर्देश है । दूसरे भागका पहलेके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। दूसरा भाग अनेक उपवि. भागोंमें बंटा हुआ है। इसमें बतलाया है कि गौतम इन्द्रभूति भगवान् महावीरके पास जाते हैं और उनसे अनेक प्रश्न करते है। भगवान् उनका उत्तर देते हैं। अधिकतर प्रश्न पुनर्जन्मसे सम्बन्ध रखते हैं। इस भागके मध्यमें कुछ उल्लेखनीय बातें भी हैं। उसमें पाठ' ब्राह्मण परिव्राजकों १-'कण्हे अ करकंडे य अंबडे य परासरे। कण्हे दीवायणे चेव देवगुत्ते अणारए ॥ –औप० सू., पृ. १७२ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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