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________________ श्रुतपरिचय ६७१ रोगीको मांस खाना बतलाया था । इस तरह वह अनेक जीवित प्राणियों के वधमें कारण हुआ था । इस तरह वर्तमान आगम ग्रन्थों में से ६ से ग्यारह तक के आगम कथा प्रधान हैं और वे अपने मूलरूप में नहीं हैं किन्तु एकदम परिवर्तित रूप में हैं। रह जाते हैं शेष पाँच श्रागम । उनमें से भगवतीका रूप सब से निराला है । उसमें पन्नवणा, जीवाभिगम, उववाइय, राजप्रश्नीय, नन्दी, आयारदसाओ आदि का निर्देश होने से यह स्पष्ट है कि उसका संकलन भी उत्तर काल में हुआ है। किन्तु उसमें प्राचीन इतिहास की सामग्री अवश्य है। शेष चार अङ्ग अवश्य ही अपना वैशिष्टच रखते हैं । किन्तु वे भी अपने मूल रूप में नहीं हैं यह स्पष्ट है । दिगम्बर ग्रन्थों में प्राप्त विषय सूची अङ्गों और पूर्वोको विषय सूची वर्तमान में उपलब्ध दिगम्बर जैन साहित्य में सर्व प्रथम कलंक देव के तत्त्वार्थ वार्तिक में उपलब्ध होती है । प्रश्न होता है कि जब दिगम्बर परम्परा में अङ्ग साहित्यका लोप पहले ही हो चुका था तो यह विषय सूची किस आधार से दी गई ? दि० जैन सिद्धान्त ग्रन्थों की धवला और जय धवला टीका में श्री वीरसेन स्वामी ने भी विस्तार पूर्वक अङ्गों और पूर्वोकी विषय सूची दी है, वह विषय सूची प्रायः तस्वार्थ वार्तिक के अनुरूप है, उसमें कहीं कहीं वीरसेन स्वामी ने तत्त्वार्थ वार्तिक का नाम लेकर प्रमाण रूप से उसे उद्धृत भी किया है । और दृष्टिवाद के जिन भेदों का विषय परिचय अकलंक ने नहीं दिया, उनका भी विषय परिचय वीरसेन स्वामी ने कराया है । और Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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