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________________ जै० सा० इ०-पूर्व-पीठिका महापुराण पर्व १८ श्लो ६१, ६२ में लिखा है कि ऋषभदेवका पौत्र मरीचि भी भगवान के साथ प्रव्रजित हुआ और उसने भ्रष्ट होकर सांख्य म का प्रतिपादन किया। ___कपिल-कपिल ऋषि सांख्य दर्शनके संस्थापकोंमें से हुए हैं। सांख्यकारिकाकी अन्तिम कारिकासे भी यह प्रकट होता है। श्वेताश्वतर उपनिषद्में कपिलको ब्राह्मणका बौद्धिक पुत्र कहा है म० भा० के शान्ति पर्वमें भी कपिलको ब्राह्मणका मानस पुत्र कहा है। भागवतमें कपिलको विष्णुका अवतार बतलाया है। ___ उलूक-वैशेषिक दर्शनके पुरस्कर्ता कणाद ऋषिका नाम उलूक भी था। इसीसे वैशेषिक दर्शनको औलुक्य दर्शन भी कहते हैं। सांख्य कारिका नं०७१ की माठर वृत्तिमें भी उलूक नाम आया है। उससे प्रतीत होता है कि सांख्य दर्शनमें भी कोई उलूक नामक ऋषि हुए हैं। डा. 'कीथने लिखा है कि सांख्य कारिकाके चीनी अनुवादमें सांख्य दर्शनके आचार्योंकी एक तालिका दी हुई है जिसमें पंचशिखके पश्चात् और वर्ष तथा ईश्वर कृष्णके पहले गार्ग और उलूक नाम दिया है। अतः सांख्य दर्शनके उलूक ही उल्लिखित उलूक होने चाहिएं, क्योंकि मरीचि और कपिल भी सांख्य दर्शनके ही पुरस्कर्ताओं में से थे। गार्य-यास्कने धातुओंसे नामकी उत्पत्तिके विषयमें गार्ग्यके मतका उल्लेख किया है। ऋक् और यजुः प्राति शाख्यमें भी गार्ग्य का नाम आया है । पा० भा०, पृ० ३३४) । वृहदारण्यक उपनिषद् १-ह. इं० सा०, पृ० ४४ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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