SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 587
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६२ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका बतलाया है कि दीक्षा लेनेके कितने वर्षोके पश्चात् किस ग्रन्थको पढ़ना चाहिये। हमें व्यवहार सूत्र में उसी प्रकारका कथन मिला है। जिसका आशय इस प्रकार है-तीन वर्षके दीक्षित निर्ग्रन्थ श्रमणको आचार प्रकल्प नामक अध्ययन पढ़ाना उचित है। चार वर्षके दीक्षित निर्ग्रन्थ श्रमणको सूत्रकृतांग पढ़ाना उचित है। १-'तिवास परियायस्स समण्यस्स णिग्गंथस्स कप्पह श्रायारकप नामं अज्झयणे उद्दिसित्तए ॥ २१॥ चउवास. कप्पइ सुयगडे नामं अंगे उद्दिसित्तए ।॥ २२ ॥ पंचवास परियायस्स० कप्पति दसाकप्पववहारा अोद्दिसित्तए वि ॥ २३ ॥ अट्ठवास परियायस्स० ठाणसवमवाए उद्दिसित्तए । २४ ।। दसवास परियागस्स० विवाहे नाम अंगं उद्दि० ॥ २५ ।। एक्कारस वास परियागस्त० खुड्डिया विमाणविभत्ति महल्लिया विमाणपवित्ती अङ्गचूलिय वंगचूलिया विवाहचूलिया नाम अज्झयणमुद्दिसित्तए ॥ २६ ।। वारसवास परियागस्स० अरुणोववाए गहलोववाए वरुणोववाए वेसमणोववाए वेलधरोववाए नाम अज्झयणं उद्दिसिउं ॥ २७ ॥ तेरसवास परियागस्स० उट्ठाणसुए समुट्ठाणसुए देविंदोववाए णाग परियावणियाए ॥ २८ । च उदसपरियागस्स० सुमिणभावण नामं अज्झयणमुद्दिसित्तए ।॥ २६ ॥ पण्णरसवासपरियायस्स० चारणभावना नामज्झयणमुद्दिसित्तए ।। ३०॥ सोलसवासपरियायस्स० तेनिसग्गा नाम अज्झयणमु० ॥ ३१ ॥ सत्तरसवासपरियायस्स० श्रासीविसमावणा० ॥ ३२ ॥ अट्ठारसवास० दिट्ठिविसभावण नाममज्झयणमुद्दिसित्तए ॥ ३३ ॥ एगुणवीसवास० दिहिवाय नामग • उद्दिसित्तए ॥ ३४ ॥ विसतिवास परियाए समणे निग्गंथे सव्वसुया. गुवाती भवति ॥ ३४ ॥-व्यवहार० सू०, १०३. । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy