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________________ ४८६ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका संशय होना स्वाभाविक है कि क्या जम्बू स्वामीके पश्चात् ही कोई ऐसा विवाद खड़ा हुआ था, जिसके कारणसे दोनों परम्पराके श्राचार्योंकी नामावलीमें अन्तर पड़ गया? दिगम्बर साहित्य तथा पट्टावलियोंके अनुसार जम्बू स्वामीके पश्चात् क्रमशः विष्णु,नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु ये पांच श्रुतकेवली हुए और श्वेताम्बर परम्पराके अनुसार प्रभव, शय्यंभव, यशोभद्र संभूति विजय और भद्रबाहु ये पांच चतुर्दशपूर्वी हुए। संभूति विजय और भद्रबाहु ये दोनों यशोभद्रके शिष्य थे । इनमेंसे सभूतिविजयके शिष्य स्थूल भद्र हुए और उनसे श्वेताम्बरोंकी गुर्वावलि चलो। ____ यह हम पहले लिख आये हैं कि श्वेताम्बर साहित्यमें जम्बू स्वामीके पश्चात् जिन दस बातोंका विच्छेद बतलाया गया है उनमें एक जिनकल्प भी है। विशेषावश्यकमें उस उल्लेखको भाष्यकार जिनभद्रने जिनवचन बतलाया है। वि० भा० में यह चर्चा शिवभूतिकी कथाके प्रकरणमें आई है। जब शिवभूति जिनवर द्वारा निर्दिष्ट होनेसे जिन कल्प धारण करनेके लिये उद्यत ही हो गया और किसी भी तरह नहीं माना १-'उत्तम धिइसंघयणा पुन्न विदोऽतिसइणो सया कालं । ज़िणकप्पिया वि कप्पं कयपरिकम्मा पवज्जंति ॥२५६१॥ तं जह जियवयणाश्रो पवजसि; पवज तो स छिन्नोत्ति । अस्थिति कहं पमाणं कह बुच्छिन्नोति न पमाणं ॥२५६२॥ मणपरमोहि पुलाए आहारग खवग-उवसमे कप्पे । संजमतिय-केवलि सिझणाय जंबुम्मि बुच्छिणा ॥२५६३॥ -वि० भा०। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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