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________________ जै० सा० इ० - पूर्व पीठिका ऐतिहासिक अभिलेखोंसे यह स्पष्ट है कि गोशालक के पश्चात् भी उसका आजीविक सम्प्रदाय जीवित रहा । श्रजीविकोंका सबसे प्राचीन उल्लेख गयाके निकट बारबर पहाड़ियों पर निर्मित गुफ़ा - की दीवारों पर अङ्कित है । उसमें लिखा है कि प्रियदर्शी अशोकने अपने राज्यके १३ वें वर्ष में यह गुफा आजीविकों को प्रदान की । अशोक स्तम्भों पर अङ्कित लेखामें भी आजीविकोंका निर्देश पाया जाता है । अशोकके उत्तराधिकारी दशरथने भी नागार्जुन पहाड़ी पर आजीविकोंके लिये गुफ़ाएँ निर्मित कराई थीं। इस तरह बारबर पहाड़ीकी दो गुफाओं और नागार्जुन पहाड़ीकी तीन गुफाओं में उन्हें जीविकोंके लिये प्रदान किये जानेका लेख अङ्कित है । इससे स्पष्ट है कि ईस्वी पूर्व दूसरी शती तक गोशालकका आजीविक सम्प्रदाय प्रवर्तित था; क्योंकि उसके लिए गुफ़ाएँ प्रदान की गईं थीं। इसके पश्चात् इस प्रकारका कोई उल्लेख न मिलने से यह अनुमान किया जाता है कि ईवो पूर्व दूसरी शती के अन्तमें भारतवर्ष से एक सम्प्रदायके रूपमें आजीविकोंका लोप हो गया । किन्तु मुझे इससे सन्देह है क्योंकि १३ वीं शती तक के साहित्य में आजीविका निर्देश पाया जाता है । ४७० So हार्नका कहना है कि शीलांकने अपनी टीका में और हलायुध ने अपनी अभिधानरत्न माला में दिगम्बरों और आजीवि कों को एक बतलाया है। तथा प्राचीन तमिल साहित्य में जैन के लिये जीविकका प्रयोग पाया जाता है इस लिए ६ठी ईस्वी शताब्दी से जबकि बराह मिहिर ने आजीवक शब्दका प्रयोग किया, यह शब्द दिगम्बर जैनोंका सूचक था ( इं० इ०रि०, जि० १, पृ० ०६६ ) । to हार्नका उक्त कथन भी सुसंगत प्रतीत नहीं होता । यह हम पहले लिख आये है कि शीलांकने अपनी टीका में जीविकों Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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