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________________ संघ भेद ४२५ वस्त्र बांधते हैं। उन्होंने उन्हें 'क्लीब' कहा है। इससे प्रकट होता है कि विक्रमकी सातवीं आठवीं शताब्दी तक श्व ेताम्बर साधु भी कारण पड़ने पर ही वस्त्र धारण करते थे । सो भी कटिवस्त्र | यदि कटिवस्त्र भी निष्कारण धारण किया जाता था तो धारण करनेवाले साधुको कुसाधु माना जाता था । ऊपर के विवेचनसे स्पष्ट है कि श्वेताम्बर सम्प्रदाय में शक्ति या लाचारी में ही वस्त्रका उपयोग करनेकी आज्ञा थी । उसीका दुरुपयोग करके वस्त्रका समर्थन किया गया और आपवादिक मार्गको औत्सर्गिक मार्गका रूप दे दिया । मंखलिपुत्त गोशालकका जीवनवृत्त किन्हीं विद्वानों का ऐसा विश्वास है कि महावीरने जो अचेल कताको अपनाया, यह उनपर उनके शिष्य और बादको आजीविक सम्प्रदाय के गुरु मखलिपुत्त गोसालकका प्रभाव है । अतः नीचे उसी पर प्रकाश डाला जाता है । जीविकों का कोई साहित्य प्राप्त नहीं है जिसके आधार पर उनके विषय में कोई जानकारी प्राप्त की जा सके । हाँ, श्वेताम्बर जैन और बौद्ध साहित्य में आजीविक सम्प्रदाय के संस्थापक मंखलिपुत्त गोशालकका वर्णन मिलता है । भगवती सूत्र ( १५ श० १ उ० ) में गोशालक की जीवनी विस्तारसे दी है। प्रथम यहाँ हम उसे दे देना उचित समझते हैं । 'वह मंखलि नामक एक मंख ( चित्रपट दिखाकर जीवन निर्वाह करने वाला भिक्षुक) का पुत्र था । एक ब्राह्मणकी गोशाला १ - इन्साइ० इ०रि०, पृ० १५८ से २६८ । से० बु० ई०, जि० ४५, प्रस्ता० पृ० २६ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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