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________________ ३४० जै० सा० इ० पूर्व पीठिका पश्चात् होनेवाले युगप्रधान आचार्योंका कालक्रम इस प्रकार' दिया है१ सुधर्मा २० ५ यशोभद्ग ५० वर्ष २ जम्बू ४४ ६ संभूतिविजय ८, ३ प्रभव ११, ७ भद्रबाहु १४, ४ शयंभव २३ ,, ८स्थूलभद्र ४५, २१५ , इस काल गणनाकी विशेषता यह है कि जिस प्रकार महावीर निर्वाणके पश्चात् होने वाले राजवंशोंकी काल गणनाके २१५ वर्ष (पालकसे लेकर नन्दांशके अन्त तक ) गिनाये हैं उसी प्रकार महावीर निर्वाणके पश्चात् होनेवाले युगप्रधान आचार्योंका काल भी २१५ वर्षके हिसाबसे गिनाया है। अर्थात् उधर नन्दनाशके अन्तके साथ और इधर स्थूलभद्रके स्वर्गवासके साथ महावीर निर्वाणके २१५ वर्ष पूरे होते हैं। इसके अनुसार वीर निर्वाणके १७० वर्ष बीतने पर भद्रबाहु स्वामीका स्वर्गवास हुआ। जैसा कि आचार्य हेमचन्द्रने भी अपने परिशिष्ट' पर्वमें लिखा है। श्वे. स्थविरावलीमें गौतम १-'सिरि वीराउ सुहम्मो वीसं चउचत्तवासजंबुस्स । पभवेगारस सिज्जंभवस्स तेवीस वासाणि ।। पन्नास जसोभद्दे, संभूहस्सट्ठ भद्दबाहुस्स । चउदस य थूलभद्दे, पणयालेवं दुपन्नरस ।' -वि० श्रे २- श्री वीर मोक्षात् वर्षशते सप्तत्यग्रे गते सति । भद्रबाहुरपि स्वामी ययौ स्वर्ग समाधिना ॥-प०प० । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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