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________________ प्राचीन स्थितिका अन्वेषण यहाँ हम विस्तारमें न जाकर संक्षेपमें दो एक मुद्दोंपर प्रकाश डालनेकी चेष्टा करेंगे। जैन और सांख्य-योग इस विषयमें एक मत है कि जड़ ( Maller ) स्थायी है। किन्तु उसकी अवस्थाएं अनिश्चित हैं। सांख्य मतके अनुसार एक प्रधान ही नानारूप होता है, किन्तु जैन धर्मके अनुसार केवल पुद्गल द्रव्य नाना अवस्थाओंमें परिवर्तित होता है-आकाश आदि द्रव्य परिवर्तनशील होते हुए भी अखण्ड और अविनाशी रहते हैं। ___ ऐसा प्रतीत होता है कि जबसे जड़ और चेतनका भेद विचारकोंके अनुभवमें आया तभीसे जड़के विषयमें उक्त मान्यता प्रचलित है। किन्तु उत्तरकालमें उक्त मूल सिद्धान्तमें परिवर्तन होना दृष्टि गोचर होता है । यह परिवर्तन है चार अथवा पांच भूतोंका एक दूसरेसे एकदम भिन्न और स्वतंत्र अस्तित्व माना जाना । यह मत चार्वाकोंका था। चार्वाक सांख्य योगसे अर्वाचीन है। न्याय-वैशेषिकने भी इसी मतको अपनाकर अपने ढंगसे विकसित किया। जैन और सांख्ययोगने इस मतका एक मतसे विरोध किया है, जो इस बातका सूचक है कि भूतवादी मत अर्वाचीन होना चाहिये। जैन पुद्गलको परमाणु रूपमें मानते हैं, किन्तु सांख्य प्रधान या प्रकृतिको व्यापक मानता है। जैनोंके अनुसार परमाणुओंके मेलसे जीव, धर्म द्रव्य, अधर्मद्रव्य, काल और आकाश द्रव्यके सिवाय शेष सब वस्तुएँ उत्पन्न हो सकती हैं। किन्तु सांख्य मतके अनुसार प्रधानमें सत्त्व रज और तम नामके तीन गुण हैं और इन्हींके मेलसे एक प्रधानसे महान् अहंकार आदि पांच तन्मात्रा पर्यन्त तत्त्वोंकी उद्धति १५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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