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________________ २०७ प्राचीन स्थितिका अन्वेषण समूहमें पाँच उपनिषद् आये हैं-वृहदारण्यक, छान्दोग्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय और कौषीतकी। दूसरे समूहमें कठक, ईश, श्वेताश्वर, मुण्डक और महानारायण आते हैं। और तीसरे समूहमें प्रश्न, मैत्रायणी, और माण्डूक्य आते हैं। यह हम पहले भी लिख आये हैं। श्वेताश्वर उ० में गुण (१-३), प्रधान (१-१०) शब्द तथा सांख्यके अन्य प्रमुख विचार मिलते हैं। उक्त द्वितीय तथा तृतीय समूहके उपनिषदोंमें भी सांख्यके कतिपय मौलिक विचार पाये जाते हैं। अतः डा० याकोवीका मत है कि उपनिषदोंके प्रथम और द्वितीय समूहके मध्यमें सांख्य दर्शनका उदय हुआ है। चूंकि योगदर्शनका निकट सम्बन्ध भी सांख्यके साथ है. इसलिये योगदर्शनका उदय भी उसी समय होना चाहिये । उत्तर कालीन कतिपय उपनिषदोंमें, जिनमें सांख्य सिद्धान्त पाये जाते हैं योगका नाम भी आता है। किन्तु उससे यह स्पष्ट नहीं होता कि वहाँ योग से मतलब योग दर्शन लिया है या योगाभ्यास ? ___ उस युगमें जो मौलिक परिवर्तन हुआ, सांख्य-योगका उदय केवल उसका एक चिन्ह मात्र है. वास्तविक कारण नहीं है । इसका वास्तविक कारण तो आत्माओंके अमरत्वमें विश्वास था, जो उस समय सर्वत्र फैला हुआ था। क्योंकि यह ऐसा सिद्धान्त था, जिसे मृत्युके पश्चात होनेवाले विनाशसे भीत जनताके बहुभागका समर्थन मिलना निश्चित था। आत्माओंके अमरत्वके सिद्धान्तने ही तर्क भूमिमें आकर जड़ तत्त्वकी भिन्नताको प्रदर्शित किया, जिसका प्राचीन उपनिषदोंमें अभाव है। ये दोनों सिद्धान्त प्रारम्भसे ही जैन और सांख्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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