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________________ १४८ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका हारीत कृष्ण देवने यह सुझाव दिया था कि ब्रह्मदत्त वंशनाम है, किसी राजा विशेषका नाम नहीं है। और डा० डी० आर० भण्डारकर ने भी इस सुझावको मान लिया था। क्योंकि मत्स्य पुराण तथा वायु पुराणमें एक वंशका निर्देश है। जिसमें ब्रह्मदत्त नामके सौ व्यक्ति थे। महाभारत (२-८-२३ ) में भी सौ ब्रह्मदत्तोंका निर्देश है । बौद्ध जातक दुम्मेध' में राजा तथा उसके पुत्र का नाम ब्रह्मदत्त बतलाया है गंगमाला जातकमें स्पष्ट लिखा है कि ब्रह्मदत्त एक वंश परम्परागत उपाधि थी। एक प्रत्येक बुद्धने बनारसके राजा उदयको ब्रह्मदत्त कहकर पुकारा था। (पो० हि० ऐ. इं०, पृ० ६३ )। ब्रह्मदत्त विदेह के थे डा० राय चौधरीने लिखा है कि अनेक बौद्ध जातकोंसे यह प्रकट होता है कि ब्रह्मदत्त मूलतः विदेहके थे। उदाहरणके लिये, मातिपोसक जातकमें काशीके राजा ब्रह्मदत्तके विषयमें लिखा है 'मुत्तोम्हि कासीराजेन विदेहेन यसस्सिना' ति । यहाँ काशीराजको 'विदेह' बतलाया है। इसी तरह सम्बुल जातकमें काशीराज ब्रह्मदत्तके पुत्र युवराज सोट्ठीसेनको 'विदेह पुत्त' कहा है । ( पो० हि० एं० ई० पृ० ६४) । ____उपनिषदोंके कतिपय उल्लेखोंके आधार पर डा० राय चौधुरीका विश्वास है कि विदेह राज्यको उलटनेमें काशीके लोगोंका हाथ था; क्योंकि जनकके समयमें काशीराज अजात १-'शतं वै ब्रह्मदत्तानां वीराणां कुरुवः शताम् Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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