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________________ प्रस्तावना तत्त्वोंके प्ररूपणमें प्रमाणरूपसे स्वीकृत किया है। जिनमें 'वक्रग्रीव' नाम यहाँ कुन्दकुन्दाचार्यका वाचक है; क्योंकि कुछ पट्टावलियोंमें कुन्दकुन्दाचार्यके पाँच नामोंका उल्लेख करते हुए वक्रग्रीव भी एक नाम दिया है। उन्हीं परसे इस नामको अपनाया गया जान पड़ता है, जो ऐतिहासिक दृष्टिसे अभी विवादापन्न चल रहा है। ग्रन्थकर्ता कविराजमल्ल और उनके दूसरे ग्रन्थ इस ग्रन्थके कर्ता कवि राजमल्ल अथवा पण्डित राजमल्ल हैं जो 'कवि' विशेषणसे खास तौर पर विभूषित थे और जो जैन समाजमें एक बहुत बड़े विद्वान, सत्कवि एवं ग्रन्थकार हो गये हैं। इस ग्रन्थमें यद्यपि अन्थ-रचनाका कोई समय नहीं दिया है, फिर भी कविवरके दूसरे दो ग्रन्थोंमें रचनाकाल दिया हुआ है और उससे यह स्पष्ट जाना जाता है कि आप विक्रमकी १७ वीं शताब्दीमें उस समय हुए हैं जब कि अकबर बादशाह भारतका शासन करता था। अकबर बादशाहके सम्बन्धमें कुछ ज्ञातव्य बातोंका उल्लेख भी आपने अपने ग्रन्थों में किया है और दूसरी भी कुछ ऐतिहासिक घटनायोंका पता उनसे चलता है, जिन्हें यथावसर अागे प्रकट किया जायगा । इस ग्रन्थकी एक प्राचीन प्रतिका उल्लेख पिटर्सन साहबकी संस्कृत ग्रन्थोंके अनुसन्धान-विषयक ४थी रिपोर्टमें नं० २३६५ पर पाया जाता है, जो संवत् १६६३ वैशाख सुदि १३ शनिवारकी लिखी हुई है*, और इससे स्पष्ट है कि यह ग्रन्थ विक्रम सं० १६६३ से पहले बन चुका था। कितने पहले ? यह अभी अनुसन्धानाधीन है। _* "इति श्रीमदध्यात्मकमलमार्तण्डाभिधाने शास्त्रे सप्ततत्त्वनवपदार्थप्रतिपादकश्चतुर्थः श्रुतस्कन्धः समाप्तः ॥४॥ ग्रंथाग्रसंख्या २०५ संवत् १६६३ वर्ष साख सुदि १३ शनिवासरे भट्टारक श्री कुमारसेणि तदाम्नाये अग्रोतकान्वये गोइलगोत्रे साहु पीथु तद्भार्या सूराही तत्पुत्र पंडित छजमल अध्यात्मकमलकी प्रति लिक्षापितं । लिखितं पंडित सोहिलु ॥" Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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