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________________ १०४ ] [ जैन कथा संग्रह 1 रहना चाहिये । यों सोचकर उन्होंने इधर-उधर देखा, तो भोमसिंह नामक एक किसान कांटों की बाड़ लगाता हुआ दिखाई दिया । कुमारपाल उसीके पास गये, और उससे अपने प्राण बचाने को कहा । उस किसान को कुमारपाल पर दया आगई, अतः उसने इन्हें काँटों के ढेर के नीचे छिपा दिया । थोड़ी ही देर में पैरों के निशान ढूँढ़ते हुए राजा के सिपाही वहाँ आ पहुँचे । उन्होंने भाले मार मार कर कांटों का ढेर ढूंढ लिया, किन्तु कुछ भी पता न लगा । अतः ढूंढना छोड़ वे वापस घर लौट गये । रात के समय भीमसिंह ने कुमारपाल को बाहर निकाला । उनका शरीर कांटों के लगने से लहू-लुहान हो गया था। जिसके कारण वेदना अपार होती थी, किन्तु यहाँ ठहरने का समय न था । अतः साधारण उपचार कर उन्होंने बड़े सवेरे उठकर फिर भागना शुरू कर दिया। भूखे पेट और दर्द पूर्ण शरीर से भागते-भागते, वे खूब थक गये। दोपहर के समय वे एक झाड़ के नीचे आराम करने बैठे । वहाँ उन्होंने एक बड़ा विचित्र खेल देखा- एक चूहा एक के बाद एक करके इक्कीस रुपये एक बिल में से बाहर लाया और फिर वापस उसी तरह ले जाने लगा । ज्योंही वह एक रुपया लेकर बिल में गया, त्योंही बीस रुपये कुमारपाल ने उठा लिये। चूहे ने बाहर आकर देखा कि रुपये नहीं हैं, तो वह सिर पटक-पटक छटपटा कर वहीं मर गया, यह दृश्य देखकर कुमारपाल बड़े दुखी हुए और विचारने लगे कि"ओहो ! इस प्राणी को भी धन पर कितना मोह है ?" वह धन लेकर वे आगे चले गये । यह तीसरा दिन था, किन्तु अब तक उन्हें खाने को कुछ भी न मिला था। वे इस समय थककर चूर-चूर हो रहे थे । ऐसे ही समय में श्रीदेवी नामक एक महिला बैलगाड़ी में बैठकर अपनी ससुराल से पीहर को जा रही थी । कुमारपाल को दुखी देखकर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003828
Book TitleJain Granth Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
PublisherPushya Swarna Gyanpith Jaipur
Publication Year1978
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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