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________________ श्री नाहटाजी ने दिनाङ्क ६-११-६१ के कार्ड में मुझको लिखा कि"भरतपुर के श्री नन्दनलाल पल्लीवाल मुझे ईतिहास लिख देने अथवा मेरी देख रेख में लिखवा देने का कई मास से अनुरोध कर रहे हैं और उन्होंने कुछ सामग्री भी मुझे भेज दी हैं। अन्त में नाहटाजी ने मुझे लिखा “मैं तुमसे यह कार्य करवा कर अपनी जिम्मेदारी से तुरन्त हलका होना चाहता हूँ।'' मैं आपके प्राग्रह को कैसे टाल सकता था और टालने जैसी बात भी नहीं । फिर आपका मेरे पर जो स्नेह और अनुग्रह है। परन्तु मैं श्री यतीन्द्रसूरि-अभिनन्दन गौंथ के मुद्रण का कार्य बम्बई साढ़े तीन मास रह कर करके लौटा ही था अतः आपकी इच्छानुसार मैं इस कार्य को तुरन्त तो प्रारम्भ नहीं कर सका, फिर भी आपसे मिलने के लिए मैं दिसम्बर १३ शनिवार को बीकानेर के लिये रवाना हा । बीकानेर में मैंने ता० १६ पर्यत ठहर कर प्राप्त सामग्री का अवलोकन किया और प्राप्य सामग्री के टिप्पण तैयार करके भीलवाड़ा ता० २०-१२-५८ को लौट आया । फिर परिश्रम पूर्वक इस कार्य को पूर्ण किया। __श्री नाहटाजी की कृपा से पल्लीवाल जाति का इतिहास लिखने का जो सौभाग्य मुझको प्राप्त हुअा है, मैं श्री नाहटाजी का अत्यन्त आदर करता हूँ | श्री नन्दनलालजी पल्लीवाल, भरतपुर ने जो सामग्री तत्परता एवं उत्साह से एकत्रित करके नाहटाजी के द्वारा मेरे पास भेज दी, उससे मुझको सामग्री जुटाने में बहुत कम श्रम करना पड़ा और कार्य भी शीघ्र सम्पन्न हो गया। इसके लिये और उनके जाति प्रेम के लिये उनकी हृदय से सराहना करता हैं। प्रकाशित जैन प्रतिमा लेख सम्बन्धी पुस्तकों पर प्रकाशित प्रशस्ति ग्रथों और पल्लीवाल ज्ञाति द्वारा प्रकाशित ( Census Report 1920 A. D. पर एवं वि० सं० १९७० में प्रकाशित 'रीति-रश्म' पुस्तक तथा श्री नन्दनलाल पल्लीवाल द्वारा संग्राहित इतर सामग्री पर यह प्रस्तुत लघु इतिहास अपना ढाँचा रच पाया है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003825
Book TitlePallival Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherNandlal Jain Pallival Bharatpur
Publication Year1963
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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