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________________ ( १०६ ) अजमेर और दिल्ली छोड़कर चौहानों ने रणथंभोर में एक नया राज्य की स्थापना की। किन्तु सन् १२२६ में इल्तुत्मिश ने रणथम्भोर पर अधिकार कर लिया। लगभग दस साल बाद पृथ्वीराज तृतीय के प्रपौत्र वाग्मट ने रणथम्भोर पर घेरा डाला। थोड़े ही दिनों में दुर्गस्थ मुस्लिम सिपाही भूख और प्यास से तड़पने लगे। यह अज्ञान है कि उनमें से कितने बचे ; किन्तु यह निश्चित है कि चौहानों ने रणथम्भोर पर वापस अधिकार जमा लिया। मुसल्मानों ने सन् १२४८ और १२५३ में दुर्ग को फिर जीतने की कोशिश की' । किन्तु दोनों बार काफी हानि उठाकर उन्हें वापस होना पड़ा और वाग्भट की शक्ति लगातार बढ़ती ही गई। सन् १२५४ के लगभग वाग्भट का पुत्र जैत्रसिंह सिंहानारूढ़ हुआ। हम्मीर के शिलालेख के अनुसार, "जैत्रसिंह एक नवीन प्रकार का सूर्य था, क्योंकि उसने मण्डप में भी स्थित जयसिंह को तप्त किया। उसके कठोर कुठार की धारा ने कूर्मराज ( कछवाहे राजा ) के कंठ का छेदन किया था। उसकी तलवार ककरालगिरि के पालक के सिर पर खेल चुकी थी, उसने झपाइथा-घट्ट में मालवे के राजा के सौ सैनिकों को पकड़ लिया और उन्हें अपना दास बनाया२" इस उल्लेख से स्पष्ट है कि जैत्रसिंह भी प्रवर्धमान राज्य का स्वामी था। शायद आमेर के कछवाहे राजा को मारकर उसने आमेर का कुछ भू-भाग अपने राज्य में मिला लिया हो। कर्करालगिरि शायद यादव राजपूतों के हाथ में रहा हो । विशेष संघर्ष मालवे से था। झफाइथा घट्ट झवाइत-घाट) के स्थान पर (जो चंबल १. देखें वही पृ० १०३-१०५ २. शिलालेख ऊपर देखें । यह श्लोकों का भावार्थ मात्र है । For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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