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________________ १३० ] | समयसुन्दर रासपंचक हाउ हार तिrs हुस्यइ जी, सहीय जुआ साथ । काटिस्यु घर थी कपूत नइ जी, हटकी झाली हाथि ||५|| रेनं०|| इम चितवि नइ आवियउ जी, हाटइ करीय हजूर । पुण्यसार नइ पूछीयउजी, कोपइ आंखि करूर ॥ ६ ॥ रे नं० ॥ साची बात कही सहू जी, पुण्य प्रबल पुण्यसार । store सेठ कहइ वली जी, हितशिक्षा हितकार ||७|| रे नं० || भूषण आणी भूप नो जी, आवइ इण घर मांहि । वचन बहु विरुवा वली जी, बोलइ झाली बांहि ॥ ८ ॥ रे नं० ॥ कंठ ग्रही कोपइ करी जी, काठ्यउ कुमर कुवेलि । अमरस कुमर नइ ऊपनो जी, तिणि वेला तिणि मेलि || ६ ||रे नं० करिस्युं करम नो पारिखो जी, इम चितवि अणबोल | नीकलियो पड़ती निसा जी, तेहनो पुण्य अतोल ||१०|| रे नं०|| राति पड़ी रवि आथम्यो जी, पसर्यो प्रबल अंधेरे । बड़ कोटर मiहे वस्त्र जी, निपट नगर नइ नेड़ि || ११||रे नं०|| कहीय केदारा गउड़ीयइ जी, अनुपम एही ढाल । छठ्ठी छलां मन हरइ जी, चोखइ चित्त रसाल ||१२||रे नं०|| [ सर्व गाथा ६२ ] ॥ सोरठा ॥ तुरत पुरदर तेथि, घरि आयो घरणी भणइ । कुमर न दीसइ केथि, गयो किहां गरूया धणी ॥ १ ॥ सेठ कहइ सुणि नारि, शिक्षा कारण मई सही । हिवणां आणे हार, कहि इम मई काढ्यउ घरा ॥ २ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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