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________________ खरतरगच्छ दीक्षा नन्दी सूची १५ भुवनलक्ष्मी साध्वी को दीक्षा दी । चंदनसुन्दरी गणिनी को महत्तरा पद देकर चन्दनश्री नाम प्रसिद्ध किया। ___ सं० १३४० मिती ज्येष्ठ सुदि ४ के दिन जैसलमेर में जिनप्रबोधसूरि जी ने निम्नोक्त दीक्षाएं दीं-१ मेरुकलश, धर्मकलश, लब्धिकलश मुनि एवं पुण्यसुन्दरी, रत्नसुन्दरी, भुवनसुन्दरी, हर्षसुन्दरी साध्वी। सं० १३४१ फाल्गुन कृष्णा ११ को बिक्रमपुर में विनयसुन्दर सोमसुन्दर, लब्धिसुन्दर, चन्द्रमूत्ति, मेघसुन्दर साधु एवं धर्मप्रभा, देवप्रभा साध्वियों को दीक्षित किया। सं० १३४१ में जावालिपुर पधार कर मिती वैशाख सुदि ३ को अपने पाट पर श्रीजिनचन्द्रसूरि को अभिषिक्त किया और उसी दिन राजशेखर गणि को वाचनाचार्य पद दिया। वैशाख सुदि ८ को सकल संघ को एकत्र कर मिथ्यादुःकृत दिया और वैशाख सुदि ११ को स्वर्ग सिधारे । जिनचन्द्रसूरि (कलिकाल केवली) ये समियाणा (गढसिवाणा) के मंत्री देवराज की धर्मपत्नी कोमलदेवी के पुत्र थे। इनका जन्म नाम खंभराय था। इनका जन्म सं० १३२४ मार्गशीर्ष सुदि ४ को हुआ था। सं० १३३२ ज्येष्ठ सुदि ३ को जिन प्रबोधसूरि से दीक्षित हुए, क्षेमकीत्ति नाम प्रसिद्ध हुआ। जेसलमेर नरेश कर्णदेव, जैत्रसिंह और सिवाणा के समरसिंह व शीतलदेव आपके भक्त थे। सम्राट कुतुबुद्दीन को अपने सद्गुणों से चमत्कृत किया था। सं० १३४२ वैशाख सुदि १० को जावालिपुर में प्रीतिचंद्र, सुखकीति, जयमंदिर साधु और रत्नमंजरी, शीलमंजरी साध्वियों को दीक्षित किया। वाचनाचार्य विवेकसमुद्र गणि को उपाध्याय पद, सर्वराज गणि को वाचनाचायं पद, बुद्धिसमद्धि गणिनी को प्रत्तिनी पद से अलंकृत किया। मिती जेठ बदि ११ को वा देवमूत्ति को अभिषेक (उपाध्याय) पदाधिष्ठित किया। सं० १३४४ मार्गशीर्ष शुक्ल १० को जालोर ‘में पं० स्थिरकीति गणि को आचार्य पद देकर उनका नाम दिवाकराचार्य प्रसिद्ध किया। सं० १३४५ मिती आषाढ़ सुदि ३ को मतिचन्द्र, धर्मकीति आदि को दीक्षा दी । मिती वैशाख बदि १ को पुण्यतिलक, भुवनतिलक मुनि तथा चारित्रलक्ष्मी साध्वी को दीक्षित किया। राजदर्शन गणि को वाचनाचार्य पद से विभूषित किया। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003814
Book TitleKhartar Gaccha Diksha Nandi Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta, Vinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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