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________________ उत्तम मुक्तापिष्टि से, चक्कर होते दूर प्रभु की करुणा-वृष्टि से, उगता ज्ञान जरूर ३१ मिटता रोग प्रमेह का, चन्द्रप्रभा से सद्य कटता बंधन स्नेह का, पढकर प्रभु के पद्य ३२ यथा अग्नितुडी वटी, करती अग्नि प्रदीप्त आत्मा को सज्ज्ञान से, करते रहिये तृप्त ३३ होती त्रिफलाचूर्ण से, नेत्रव्याधियां शान्त दिशाबोध प्रभु ने दिया, रहा न मन उद्भ्रान्त ३४ गंधकघृत से मिट रही, जैसे खुजली खाज प्रभु प्रवचन से उठ रही, सत्यभरी आवाज ३५ ब्राह्मीघृत से हो रही, स्मरण-शक्ति परिपुष्ट __ प्रभु प्रवचन से हो रही, चरणभक्ति परिपुष्ट ३६ प्रतिश्याय का शत्रु है, रसभैरव आनन्द महावीर प्रभु ने कहा, गति अवरोधक द्वन्द्व ३७ मकरध्वज पुरुषत्व की, औषधि यहाँ प्रधान महावीर पुरुषार्थ को, देते पहला स्थान ३८ गर्भवती स्त्री का गिना, गर्भपाल को मित्र महावीर प्रभु ने दिया, स्त्री को स्थान पवित्र ३६ क्षुधा जगाती आ रही, पीपल पय के साथ जगती जिज्ञासा नई, कर प्रभु का साक्षात ४० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003813
Book TitleAyurved Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Pugaliya
PublisherUsha evam Mina
Publication Year1975
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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