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________________ पढमं थेरी पुणो चिंतेड़-- 'मह एक्कमच्छि कारणं होउ ।' इयरीए दो वि च्छोरण कारिण भूयारिण । पुरणो विसा चितेइ - 'मम एगो हत्थो भवउ ।' समोसियाए दो वि हत्या नट्टा | पुरणो सा चितेइ - 'मम एगो पाओ होउ ।' समोसियाए थेरीए दो विपाप्रा नट्ठा | सापडिया अच्छइ । 1. शब्दार्थ : 2. वस्तुनिष्ठ प्रश्न : सिरी मतिमं तुस्से श्रइ सिरिं तु न पत्थए । इ - सिरिमिच्छंतीए थेरीए विणासि अभ्यास == कण्डा छारण समोसिय= पड़ौसी इयरो = दूसरी * 32 पल्लत्थ = पार्थना नायं अच्छी सही उत्तर का क्रमांक कोष्ठक में लिखिए : 1- पहली बूढ़ी स्त्री को व्यंतर ने (क) सुन्दर होने का (ग) धनवान होने का 3. लघुत्तरात्मक प्रश्न : = ज्ञात किया आँख Jain Educationa International = वर दिया था प्रश्न का उत्तर एक वाक्य में लिखिए: 1- दूसरी पड़ौसिन ने व्यंतर से क्या वरदान मांगा ? 2- पहली वृद्धा ने अपना भवन क्यों गिरवा दिया ? अप्पा ||1|| * (ख) बुद्धि प्राप्त करने का (घ) ईर्ष्या करने का 4. निबन्धात्मक प्रश्न : ( क ) व्यंतर ने प्रथम वृद्धा को क्या वरदान दिया ? (ख) प्रथम बृद्धा ने अपनी पड़ोसन के नुकसान के लिए क्या किया ? (ग) इस पाठ की शिक्षा अपने शब्दों में लिखो । उत्तराध्ययनरिंग (जिनदासगरि महत्तर) रतलाम, 1933 से उद्धत इस्सरी : फिट्ट पात्र For Personal and Private Use Only =धनवान स्त्री = नष्ट होना = पैर [ ] प्राकृत गद्य-सोपान www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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