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________________ गाथा-7. 'अत्यन्त खजाने वाला और कामदेव के समान सुन्दर कौशाम्बी का स्वामी यह राजा जयकोष है । हे मृगाक्षी! क्या यह तुम्हारा मन हरता है ?" राजकुमारी ने कहा- 'हे कपिंजला ! वरमाला अत्यन्त सुन्दर बनायी गयी है।' भद्रा ने सोचा- 'अप्रकट वचनों से ही इस राजा का निषेध कर दिया गया है ।' तब वह आगे जाकर कहती है - गाथा-8 'हे कोयल की तरह कठवाली ! जिसकी तलवार रूपी राहु से वैरी रूपी चन्द्रमा ग्रस लिया गया है उस कलिंगपति जय के माला डाल दो।' राजकुमारी ने कहा- 'पिताजी के समान आयु वाले इनको प्रणाम करती हूँ।' भद्रा ने आगे जाकर कहागाथा-9. 'हे गजगामिनी ! जिसके हाथी-समूह के घंटाओं की आवाज से ब्रह्माण्ड ___ फूटने लगता है वह गौड़ देश का राजा वीरमुकुट क्या तुझे अच्छा लगता है?' राजकुमारी ने कहा-' हे माँ ! क्या मनुष्यों का इतना काला रूप भी होता है ?' अतः तुरन्त आगे चलो। मेरा हृदय काँप रहा है ।' तब थोड़ा हंसती हुई वह आगे गयी और कहने लगीगाथा-10. 'हे कमल की तरह नयनों वाली ! क्षिप्रा नदी के किनारे बनकुज में क्रीड़ा करने की इच्छा करती हुई तुम इस अवन्ती देश के राजा पद्मनाभ को अपना पति बना लो' राजकुमारी ने कहा- 'हे सखी ! इस स्वयंवर मण्डप में चलते-चलते थक गयी हूँ। तो क्या अब भी तुम बोलती ही रहोगी ?' तब भद्रा ने सोचा 'यह भी मेरे मन को ठीक नहीं लग रहा है, ऐसा राजकुमारी ने सूचित कर दिया है तो आगे चलती हूँ।' ऐसा सोचकर वह भद्रा उसी प्रकार कहने लगीगाथा-11. 'यह राजा निषध का पुत्र राजकुमार नल है, जिसके सौन्दर्य को देखकर हजार नयनों वाला इन्द्र अपने हजार नेत्रों को सफल मानता है।' तब विस्मित मनवाली दमयन्ती ने सोचा-'अहो समस्त रूपवन्त अगो का निवासस्थान, अहो ! अदभुत लावण्य, अहो ! अपूर्व सौभाग्य, अहो ! मधुर हास्य का निवास ! इसलिए हे हृदय, इस राजकुमार के प्रति स्वीकृति देकर परम संतोष को प्राप्त करोगे ।' ऐसा सोचकर मल के कंठ में उसने वरमाला डाल दी । 'अहो ! अच्छे वर का वरण किया' इस प्रकार लोगों की आवाजें उठने लगीं। 000 प्राकृत गद्य-सोपान 179 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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