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________________ मूला सेठानी ऊपर बैठी हुई उस बात को देखकर चित्त में दुखी हुई । वह सोचने लगी-'अहो ! सब नष्ट हो गया । सेठ उसे प्रगाढ़-प्रणय करने वाला दिख रहा है। यह पुत्री है ऐसा स्वीकार किया है, किन्तु कार्य के परिणाम को नहीं जानता है। यदि किसी प्रकार सेठ ने इसे पत्नी बना दिया तो मैं गृह-स्वामिनी न रहूंगी। अत: प्रारम्भिक अवस्था को प्राप्त इस रोग को यहीं नष्ट कर देना चाहिए । बड़े होने पर कौन नखों को काटता है ?' इस प्रकार थोड़े क्रोध के ईधन से प्रज्वलित क्रोधअग्नि वाली उस मूला ने सेठ के निकल जाने पर नाई को बुलाकर चन्दनबाला का सिर मुड़वा दिया। बेड़ी में उसे डाल दिया। जूतों के प्रहार से उसे मारा और कठोर खरे वचनों से उसकी निन्दा की । अपने नौकरों को बुलाकर उसने कहा-'जो इस बात को सेठ को कहेगा उसे मैं स्वयं निकाल दूंगी।' ऐसा कहकर क्रोधपूर्वक उसने डराया । और एक कोठरी में चन्दनबाला को डाल दिया । दरवाजा बन्द कर दिया। ताला लगा दिया और अपने हाथ में चाबी ले ली। कुछ समय बाद सेठ आया। परिजनों को पूछता है-'चन्दनबाला कहाँ है ?' मूला के भय से डरा हुआ कोई भी नौकर नहीं बोलता है। सेठ समझता है कि वह बाहर खेल रही होगी अथवा ऊपर होगी। रात आने पर वह फिर पूछता है, किन्तु कोई नहीं बताता है। 'निश्चित ही वह कहीं सो रही होगी।' ऐसा सोचकर सेठ सो गया। दूसरे दिन भी वह चन्दनबाला न दिखी। नौकरों को उसने पूछा। किसी ने नहीं बतलाया । तब मन में उसे कुछ शंका हुई तो उसने मूला को पूछा'प्रिय ! चन्दनबाला दिखायी नहीं दे रही है। उसका क्या हाल है ?' मुह ऊँचा किये हुए क्रोधपूर्वक मूला ने कहा-'क्या आपको और कोई काम नहीं है जो दासदासियों की चिन्ता से व्याकुल हो दुःखी हो रहे हो ?' सेठ ने कहा -'प्रिय ! प्रिय वचन बोलो । यह अच्छी बात नहीं है । तुम्हें उससे क्या ईर्ष्या है ?' मूला ने कहा-'यदि मुझे इस प्रकार ईर्ष्यालु जानते हो तो क्यों मुझसे पूछते हो ?' सेठ ने कहा-'अब मैंने भी जान लिया कि सभी अनर्थ की जड़ तुम हो । अतः अब दूसरे को नहीं पूछूगा।' । दूसरा दिन भी व्यतीत हुआ। तीसरे दिन क्रोधी सेठ नौकरों को पूछता है'बताओ, अन्यथा तुम सबको मारूंगा।' तब एक बूढ़ी नौकरानी सोचती है-'मेरे 172 प्राकृत गद्य-सोपान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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