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________________ 7. गुरण - गरिमा [ सप्तमी विभक्ति ] सव्वे पाणा चे गुणा हवन्ति । तेसु गाणं होई । जहा ब्रम्हम्मि जीव प्रत्थि तहा तुम्हम्मि वि । श्रचेप्ररणदव्वेसु पारणा रण सन्ति । किन्तु तेसु गुणा हवन्ति । जहा - फले रसं प्रत्थि, पुप्फे सुगंधो अत्थि, दहिम्मि घ प्रत्थि, जले सीयलमा प्रत्थि, प्रग्गिम्मि उहा प्रत्थि । सरोवरे कमलाणि सन्ति । कमलेसु भमरा सन्ति । रुक्खेसु फलागि सन्ति । नीडे पक्खिणो सन्ति | नई नात्रा तरन्ति । घरे जणा निवसन्ति । पुरिसेसुखमा वसइ । जुत्राणे सत्ति होइ । जुवई लज्जा प्रत्थि । तासु सद्धा प्रत्थि । बालए सच्च प्रत्थि । छत्ते विनयं प्रत्थि । विउसम्म बुद्धी प्रत्थि । सिसुम्मि अण्णा ग्रत्थि । किन्तु साहुम्मि तेनो अत्थि । मात्राए समप्पणं प्रत्थि । धेणूए दुद्ध प्रत्थि । बहूए गुणा सन्ति । माला पुकारिण सन्ति । गनणे तारा सन्ति । गुणेण बिला कि विवत्थू । (क) हिन्दी में अर्थ लिखो : शब्दरूप श्रर्थ उनमें तेसु अहम्मि द फले दहिम्म नई ए मालाए 8 ******** Jain Educationa International ****** www. पहिचान सर्व, ब.व. ******** ********* ............ 1000 अभ्यास (ख) सप्तमी के रूप लिखो : शब्द अम्ह तुम्ह त गर बहू कवि बाला ए. व. अहम्मि .... For Personal and Private Use Only ब.व. अम्हे पु ........ ******* ...................... (ग) प्राकृत में अनुवाद करो : मुझ में शक्ति है । उसमें जीवन है । उस (स्त्री) में लज्जा है । हम सब में क्षमा है । बालकों में विनय है । साड़ी में फूल हैं । बृक्षों पर पक्षी हैं। घरों में बालक हैं । ........ ********1000 प्राकृत गद्य-सोपान www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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